ज्ञानेश्वरी | Gyaneshwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञानेधवर ओर ज्ञाने थरी १ कविका संक्षिप्त परियय-- घैसे तो शानेश्वर महाराजका सारा जीवन * चमत्कारोंसे भरा है किंतु सब चमत्कारोंका चमत्कार उनके लिख हुए दो वेदांत ग्रंथ शानेशरी और अनुभवामृत हैं। ये ग्रैथ उन्होंने अपनी आयूके पंद्रहवे वर्षमें लिखे हैं और जो बात शब्दौसे नहीं व्यक्त हो सकती वह शब्द चित्रोंसे मूर्तिमान करके दिखाई है । हे शानेश्वरी और अनुभवाम्ृतको पढते पढते अमूर्त विचारोंका स्पष्ट शब्दचित्र देखकर सहसा हृदय कह उठता है “ वाल्मिकीकी प्रतिभा, व्यासकी प्रशञा, कृष्णीी आत्मानुभूति, शैकरका वैराग्य और बुद्धकी करुणाका समीकरण शानेश्वर महाराज हैं| सूर्ससे भी प्रखर शानके साथ चांदनीसे भी शीतल करुणाका स्पदी होता है यहां । इसी लिये आधुनिक युगमें मी सारा महाराष्ट्र उन्हे माउली कहता है। महाराष्ट्रमें माउली शब्दका अर्थ शानेश्वर है और कोशमें माउली शब्दका अथ मां । महाराष्ट्रकी इस माउलीने अपने साहित्यके रूपमें मराठो भाषाभाषी जनताको कल्पदृक्षकी छायामें बिताकर कामबेनुके दूधमेँ पकाया हुवा अमृरतान्न खिलाया है अक्षय-पात्रमें | इसीलिये शानेश्वर महाराजके बाद जो कोई महापुरुष महाराष्ट्रमें पेदा हुवा उसने शानेशवर ओर शानेश्वरीका ' ऋण स्वीकार किया है। शानेश्वरीके बाद मराठी भाषामें लिखे गये प्रत्येक धर्म-अथ पर अथवा पारमार्थिक ग्रंथ पर शानेश्वरी और अनुभवाम्रतका प्रभाव देखनेको मिलता है। शानेश्वरी और अनुभवामृत कोई रामकथा अथवा क्ृष्णकथा नहीं किंतु वेदांत-ग्रंथ है। वेदांत काव्य है। मराठी भाषामें ऐसे कई वेदांत ग्रंथ हैं, उनमेंसे कुछ ज्ञानेश्वरीके पहल भी लिखे गये थे और कुछ शानेशवरीके बाद भी लिखे गये हैं, पर मराठी भाषाभाषी जन-मानसपर शानेश्वरी और अनुभवाम्गतका जो प्रभाव है वह और किसीका नहीं दीखता । आधुनिक विज्ञान-विद्या विभूषित होकर भी नो हजार छंदोंका ग्रंथ कंठस्थ कर उसका नित्य-पाठ करनेवाले महाराष्ट्रीय हजारो हैं। वैसे तो लाखों लोग शानेरवरीका नित्य-पाठ करते हैं । अपनी आयूके पैद्रहवे सालमें ऐस ग्रथ लिखानेवाले शानेश्वर महाराजका जन्म शा. शक ११९७ युवा नाम संवत्सर श्रावणवद्य अष्टमी रातको बारह बजे हुवा था | इसलिये सारे महाराष्ट्रकी यह मान्यतासी हो गयी है कि भगवान कृष्णने ही अपनी गीता समझानेके लिये शानेश्वरके रूपमें जन्म लिया था। शानेश्वर महाराज जिस समय करीब दस सालके थे उसी समय समाजके विद्वान लोगोंकी अजानुसार उनके माता पिताने देहान्त प्रायश्रित्त लिया था। उस समयका वर्णन करते समय शानेश्वर महाराजकी छोटी बहन मुक्ताई कहती है टिप्पणि ( १) इसी लेखककी शानेश्वर और उनका साहित्य इस पुस्तकमें शानेश्वर महाराजके विषयमें संपूर्ण जानकारी दी है ।




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