श्री कल्कि - पुराण | Shri Kalki Puran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
542
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो शब्द
'कल्किपुराण का महत्व वतंमान समय में विशेष बढ गया है। यह
मुन्यत युग-परिवतेत' सेसम्बन्ध रखता है शौर इस समय परिवर्तन की
भावता ससारव्यापी होरही है। लोग यह नहीं समझ पाते कि एक तरफ
मनुष्य ज्ञान-विज्ञान में प्राशातीत उन्नति करके प्रकृति का स्वामी बन
रहा है शोर दूसरी तरफ वह जीवन-निर्वाह के साधनों को ग्रापस में
प्रावरकतानुसार बॉँट कर व्यवहार में भी नही ला सकता | इस परस्पर
विरोधी हृध्य को देख कर यही प्रतीन होता है कि हमारी 'सम्यता के
जडमून में ही कोई खराबी है। यह तो सब कोई भ्रच्छी तरह जानते हैं
कि जब तक स सार मे न्याय श्रौर सत्य की स्थापना न होगी और प्रत्येक
मनष्य को उपका न्यायोचित भाग प्रदात न किया जायगा तब तक
प्रसतोष और भ्रशान्ति को श्रग्नि किसी रूप में घघकती ही रहेगी |
'कल्किवी विदेषता इसी बात मे है कि वे इस ज्वालां को शान्त
करके ससार में 'सत्युग की स्थापना करेगे इसमें तो सन्देह नहीं कि देवी-
शक्ति के अ्रतिरिक्त और किसी उपाय से काम लेकर वर्तमान अ्रष्ट भौर
स्वार्ययरता को भावना से आ्रात-प्रोत दुनिया का सुधार नहीं किया
जा सकता | क्योंकि इस समय ससार मे, राष्ट्री मे, समाब से, व्यक्ति
में जो दोष उत्पन्त हो गये हैं, उनकी कोई समझता न हो ऐसी बात नहीं
है । इस समय विद्या, शिक्षाओर प्रचार-कार्य की इतनी भ्रधिकता हो
गई है कि छोटी प्रायु के लडके भी सावंजनिक-जीवन झौर स सारव्यापी
परिवर्ततों की बातों को इतना जान लेते है जितना सौ, दोसौ पुर्व॑ परि-
पवव श्रायु के पढे-लिखे व्यक्ति भी नहीं जान पाते थे । इस
समय समाचार पत्र रेडियो, , देली-विजन, द्रवर्ती देशों के
अपण को सुविधा श्लादि की इततवी भरमार हो गई है कि राह चलता
व्यवित भी इधर-उधर से सुनकर स सार की राजनैतिक भौर सामाजिक
. प्रगति का सामान्य ज्ञान प्राप्त कर लेता है |
पर यह जान कर भी कि इस सम्तय मनुष्य सात्र को एकता,
पारस्परिक सहयोग भोर सामूहिक प्रयत्तो के बिना मनुष्य का जीवन
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