नंददास ग्रन्थावली | Nandas Granthawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.89 MB
कुल पष्ठ :
528
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ )
समीचीन है। सक्त के लिये अच्छे कुल का होना न होना इतने महत्व
का न था कि नाभाजी को उसे लिखना झावश्यक होता पर निवास-
स्थान का उल्लेख करते हुए जाति का लिख देना ही विशेष स्वाथाविक
है। अन्य सक्तो के विपय में थी कहीं झन्यत्र उनके झच्छे कुल के होने
का बणुंत नहीं किया गया है यद्यपि वहुत से भक्त सुबंशजात थे ।
श्रीचंद्रद्यास-अम्रज-सुह्टद के कई अर्थ हो सकते हैं--
१, चंद्रद्दास के बड़े भाई के सित्र
२. 'ंद्रह्ास के प्रिय बढ़े साई
३. चंद्रह्ास जिसके प्रिय वड़े भाई थे
अंतिम दो से नंददास तथा चंद्रद्दास का भाई भाई होना स्पष्ट है;
चाहे उनमें से कोई भी वड़ा रहा हो और यही झर्थ लेना युक्तियुक्त है ।
उस समय चंद्रद्यास नाम का कोई ऐसा प्रसिद्ध व्यक्ति और उसपर
'नंददासजी से वढ़कर प्रसिद्ध व्यक्ति नदी पाया जाता; जिसका उल्लेख
कर नंदृदासजी से बढ़कर प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं पाया जाता; जिसका
उठ्लेख कर नंददासजी का परिचय दिया जा सके। राजनीतिक या
साहित्यिक इतिह्दासों या भरक्त-श्दखला किसी में तत्कालीन किसी प्रसिद्ध
व्यक्ति का यह नास नहीं सिलता । स्वभावतः किसी विशष्ट पुरुष से
संबंध बचलाकर परिचय देने की श्रथा अवश्य है पर चंद्रह्ास के ऐसा
पुरुष होने का कही कुछ पता नहीं है इसलिए भाई भाई संबंध बतलाना
ही ठीक ज्ञात होता है । अन्य साधनों से इसका कहाँ तक समर्थन होता
है; यह बाद को देखा जायगा ।
घ्रवदासजी के बयालीस श्र थ प्रसिद्ध है, जिनमें एक भक्तनामावली
है। इनका रचनाकाल सोलहवी विक्रमीय शताब्दी का अंतिम भाग है ।
इनकी तीन रचनाओं मे रचना का समय दिया हे; जो सं० १६९३, सं०
श्द८६द तथा सं० १६९८ वि० है। भक्तनासावली के दोहे सं० ७७-5६
यर संददासज' का इस प्रकार उठलेख है -
नंददास जो कट कदमों राग-रंग सों पागि।
झन्छर सरस सनेदहमय सुनत सख्रवन उठ जागि ॥
रमन दसा झदूभुत्त हुती करत कवितत सुढ़ार ।
वात प्रेम की सुनत ही छुटत नन जलधार ॥
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