तिब्बत में बौद्धधर्म | Tibbat Men Bauddh Dharm

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Tibbat Men Bauddh Dharm by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शांतरक्षित-बुग [१७ बाद भोट भाषा में होने लगे । इन अनुवादों में प्रतिशब्द चुनते समय संस्कृत के घातु-प्रत्ययों का भोट भाषा के घातु-प्रत्ययों से मेल होने का पूरा खयाल रक्‍्खा गया है, ओर संस्कृत के हर एक विशेष शब्द के लिए एक एक शब्द नियत कर दिया गया है। उदाहग्सा्थ--छोस्‌-5 जिन ( धर्म-धर ), छोस्‌- सक्योझ ( धर्मपाल ) | हाँ, सदस-ग्येस्‌ ( बुद्ध ), व्यड-छुप्‌ ( बोधि ) आदि कुछ शब्द जो पिछली दो शताब्दियों मे बहुमचलित हो गए थे, उन्हें उन्हों ने बैसा ही रहने दिया । प्रतिशब्दों को चुन कर उन्हों ने प्रथक्‌ पुस्तकें बना लीं, जो “व्युत्पत्ति! के नाम से अब भी सूतन-5 ग्युर्‌ के भीतर मौजूद हैं। । महायान तथा दूसरे सूत्रों का अधिकांश अनुवाद इसी समय का है।इस समय कुछ तंच्र-प्रथों के भी अनुवाद हुए थे। इस समय के असुबादों में नागाजुन, असंग, बसुयं॑धु, चंद्रकोर्ति, विनीतदेव, शांतरक्षित, कमलशील आदि के कितने दी गंभीर दर्शन-अंथ भी हैं । जिनमित्र, ये-शेस-सदे, धमंताशील के अतिरिक्त भोट-देशीय आचाये दूपलू-बचूँगूस्‌ इस काल के महान अनुवादक हैं। जितना अनुवाद-कार्य ७९५-८४० ई० में हुआ, उतना किसी फाल में न हो सका । रलू-प-चन्‌ ( ८१७-८४१ ई० )--बढ़े भाई (गूलड' ) दर-म के रहते भी पिता के मरने के बाद यही राजपद के योग्य सममाा गया । यह पिता-पितामह से चले आते बोद्धधम के काये को चलाता ही नहीं रहा, बल्कि उस के प्रति अपनी भक्ति दिखाने में इस ने अपने पृवजों को भी भाव फरना चाहा । धर्मो- पदेश सुनते वक्त यह अपने शिर के केशों पर रेशमी चादर विछा फर उस पर व्याख्याता को बैठाता था | एक एक भिक्लु की सेवा के लिए इस ने सात सात कुटुंब नियुक्त किए थे | राज-कार्य में भी भिछुओं को चहुत अधिकार दे रक्खा था । राजधानी ल्हासा का सारा ही प्रबंध एक मभिज्ु के हाथ में था। राजा का १ तिम्बत में भारतीय भंथों के अनुवाद फा फाम भारतीय पंडित और भौट- देशीय विद्वाल्‌ मिल कर करते थे। भोव-देशीय विद्वान्‌ छो-चु-व कहे जाते हैं। इस भ्रकार भोद और संस्कृत दोनों सापाओं फा गंभीर शान एकत्रित हो जाने से मोटिया छजुवाद संसार में अद्वितीय दे




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