हिन्दी काव्य में प्रगतिवाद | Hindi Kavya Men Pragati Vaad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
604 KB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विजयशंकर मल्ल - Vijayshankar Malla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्यपीदिका १७
सक्छ लोग लगे कद्दने, उसे
रख लिया छेँगली पर दपाम ने ।
गुप्त नी ने तो अपो 'सावेठ! में सत्यामइ, चरणा और विधान
आदोएन का भी रग छा दिया है 1#
इस प्रकार द्विवेदी युग की रचनाओं में विविध युग प्रदृत्तियों
बी पूरी क्ाप दिजाई देती है। पर मार्मिकता की दृष्टि से, अपो में छीय
बर ऐेगगाछी रचनाएं कम दी हुई । इसके कइ कारण एं | एक्ता
भाषा का माँ शहर उसमें मावसचार की पूरी शप्तता लाने में ही विशिष्ट
फविगण गे रहे। दूसरे, व्याकरण पे कटर नँकुश मर स्पूर
मैतिकता घ॑_विपश्रण के कारण काव्य में कस्पपा अच्छी तर खिए
मे सब 1। इस समय की अधिकांश कविताएँ विपयप्रधाय और बर्णया
सक्र ही दिखाई देती हैं। जो थोड़ी बहुत माएप्रानक कविताएँ हईं वे
प्राप! पौरायि हैं, और जो कारपनित हैं उनमें भी ममा्पर्शा कम हैं।
छायाबाद युग
इ॒। प्रकार की रवनाभों से कवियों को मानस तृमि ने हो उको।
स्विदा सुग वे अठिम बाल में ही युछ कम्िषोंते अपनी रचनाओं
में घड़ी ख्वच्छर मनोवृत्ति वा परिचय देया भारंम कर दिया था।
डामें अपशाश | मनोरम _बस्पना और भाषतप्रदणता को अधिक
परिचय आपर्प मिछठां, १९ सप १९१४ १८% भद्दायुद्ध पे प्रात
हिन्दी करिया सूनन मार्य पर स्वच्छद गति से ददी और उसका बहुत
ई रमदोप विदास हुआ |
श साहइत का प्रशपन-दियदी युग से ही ही गया था और उसके
कह सर्ते सररर्ती भें प्रद्यशि्त हो चुझे ये, पर पूरी दुस्तक बाद सम
प्रदाशित हुई1_*
२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...