हिन्दी काव्य में प्रगतिवाद | Hindi Kavya Men Pragati Vaad

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Hindi Kavya Men Pragati Vaad by विजयशंकर मल्ल - Vijayshankar Malla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्यपीदिका १७ सक्छ लोग लगे कद्दने, उसे रख लिया छेँगली पर दपाम ने । गुप्त नी ने तो अपो 'सावेठ! में सत्यामइ, चरणा और विधान आदोएन का भी रग छा दिया है 1# इस प्रकार द्विवेदी युग की रचनाओं में विविध युग प्रदृत्तियों बी पूरी क्ाप दिजाई देती है। पर मार्मिकता की दृष्टि से, अपो में छीय बर ऐेगगाछी रचनाएं कम दी हुई । इसके कइ कारण एं | एक्ता भाषा का माँ शहर उसमें मावसचार की पूरी शप्तता लाने में ही विशिष्ट फविगण गे रहे। दूसरे, व्याकरण पे कटर नँकुश मर स्पूर मैतिकता घ॑_विपश्रण के कारण काव्य में कस्पपा अच्छी तर खिए मे सब 1। इस समय की अधिकांश कविताएँ विपयप्रधाय और बर्णया सक्र ही दिखाई देती हैं। जो थोड़ी बहुत माएप्रानक कविताएँ हईं वे प्राप! पौरायि हैं, और जो कारपनित हैं उनमें भी ममा्पर्शा कम हैं। छायाबाद युग इ॒। प्रकार की रवनाभों से कवियों को मानस तृमि ने हो उको। स्विदा सुग वे अठिम बाल में ही युछ कम्िषोंते अपनी रचनाओं में घड़ी ख्वच्छर मनोवृत्ति वा परिचय देया भारंम कर दिया था। डामें अपशाश | मनोरम _बस्पना और भाषतप्रदणता को अधिक परिचय आपर्प मिछठां, १९ सप १९१४ १८% भद्दायुद्ध पे प्रात हिन्दी करिया सूनन मार्य पर स्वच्छद गति से ददी और उसका बहुत ई रमदोप विदास हुआ | श साहइत का प्रशपन-दियदी युग से ही ही गया था और उसके कह सर्ते सररर्ती भें प्रद्यशि्त हो चुझे ये, पर पूरी दुस्तक बाद सम प्रदाशित हुई1_* २




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