दृष्टान्त - सागर भाग - 1 | Drishtant Sagar Bhag - 1

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Book Image : दृष्टान्त - सागर भाग - 1  - Drishtant Sagar Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छप गया है। . .. , कप गया है! न दृष्टान्दनसागर “द्विताय क्षाग आये-जगत्‌ के छुपरिचित ओर लखनऊ के सुमसिद्द दिदी-लेसक श्रीप्रान १० चन्द्रिका प्रसाद युप्त विखित जिसमें अत्यन्त मनोहर, रोचक उपदेश-पूर्ण जौर शिक्षा ब्रद्‌ द्ृष्टान्तों का खुन्द्र संग्रह है, जितकों घार २ पढने पर भी आपकी तृप्ति नहों दहोगी-क्ा आप हंस परेंगे, कभी भाश्चर्य्य में डघ जायंगे, कभी दया से झापका ,चित्त भर बयवेगा, कभी जोश से उम्रगें मारने कृग्रेगा, कमी चतुररों की चतुरता से आप दातों चले मंग्रुल्ली दवा चेंगे, मूखों की सूर्खता पर आप का हृदय करुणा से, कातर दो नीयया | यदि आपको संसार का कठिन अनुभव प्राप करना है, यदि भाप को थोडा पढ कर चहुन जानता है, यदि भापक्ो सभाचतुर 'भौर छुबका बनता है, यदि आपको अपने दिन भर के काम से निशृत होकर पिश्लाम के समय विशुद्ध मनोरंजन के साथ २ अचुभव-पूर्ण डपदेंश प्रा फरना, दे पो आप इस पुस्तत्य को अवश्य छोजिए स्वज पढ़िए और अपने पुत्र पुत्रियों को पढ़ाइफ । ढाई सो से ऊपर पूष्ठी बालो पुस्तक्य कामूल्य १) श्यामल्ातन वर्म्मा, -, हुं, | '.. झ्ाये-पुस्‍्तकाल्य बरेली हू हे [हे बन कल लत




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