श्रवणबेलगोला के शिलालेख | Sharvan Belgol Ke Shilalekh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
630
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चन्द्रगिरि १३
रह गये हैं। स्तम्भ के चारो ओर एक लेस है ( न० ३८)
( ५७ ) जो गड्डनरेश सारसिह द्वितीय की झत्यु का स्मारक
है। इस राजा को झत्यु सन् €७४ इ्ंस्वी में हुई थी । अत
यह स्तम्भ इससे पहले का सिद्ध द्वोता है ।
१५ महानवभ्ी सणडप--कत्तल्ले वस्ति के गर्भगृह के
दक्षिण की ओर दे। सुन्दर पूर्व-मुस चतुस्तम्भ मण्डप बने हुए
हैं। दोनों के मध्य में एक एक लेसयुक्त स्तम्भ है। उत्तर की
श्रोर के मण्डप के स्तम्भ की बनावट वहुत सुन्दर है। उसका
शुम्मटाकार शिखर वहुत ही दशेनीय है। उस पर के लेख
न० ४२ ( ६६ ) में नयकपत्ति आचार्य के समाधि-मरण का
सवाद है जे सन् ११७६ में हुआ। यह स्तम्भ उनके एक श्रावक
. शिष्य नागदेव मन्त्री ने स्थापित कराया था। ऐसे दी अन्य
अनेक मण्डप इस पर्वत पर विद्यमान हैं जिनमे लेख-युक्त स्तम्भ
प्रतिष्ठित हैं। एक चामुण्डराय बस्ति के दक्षिण की ओर, एक
एरडुकट्टे बस्ति से पूर्व की ओर और दे तेरिन बस्ति से दक्षिण
की ओर पाये जाते हैं ।
९६ सरतेश्वर---महालवसी सण्डप से पश्चिस की ओर
एक इमारत दै जे अ्रव रसेईघर के काम मे आती है। इस
इमारत के समीप एक नव फुट झँची पतश्चिममुस सूत्ति' है जे
चाहुबलि फे आता भरतेश्वर की वतलाई जाती है। मूत्ति' एक
भारी चद्गरान में घुटनों तक सेदी जाकर अपूर्ण छेडड दी गई है।
इस मृत्ति से थेडो दूर पर जे! शिलालेस न० २४ ( ६१ ) है
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