संस्कृति का व्याकरण | Sanskriti Ka Vyakaran

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Sanskriti Ka Vyakaran by नन्दकिशोर आचार्य - Nandkishore Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सस्कृति सार्वभौमिकता की दिशा सस्कृति वी चर्चा म इस बात वी अनदसी की जातो रही है कि हम अधिकाशत सस्छृत्ति के माम पर उन उपवरणो की चर्चा ही करते रह जाते हैं जिनके माध्यम से उसके बाह्य स्वरूप वी भी औपचारिव पहचान ही हो पाती है और मूछ तत्त्व अवसर अनछुआ ही रह जाता है। उस मूल तत्त्व वी खोज और फ्रि उसके सहारे सास्शृतिक उपकरणों वी वनावट वी पहचान अर्थात्‌ तात््विक और अभिव्यवत स्तर पर मस्ड्ृति के मूल आधार वा चान ही सस्वृति का वास्तविक ज्ञान है-यावी सारी चर्चा तो वही है जिसे अग्रेजी मुहाबरे में 'बीटिंग अयाउट बुर कहा जाता है। यही कारण है कि आधुनिक कहा जाने वाला समाज अधिवाशत सम्बृति को एक्ऐतिहासिक वस्तु मानता है-और आश्चय नही कि इसीलिए विश्यविद्याठया म प्राचीन इतिहास और सस्शृति' के विभाग एक ही होते है जौर व्यावि इतिहास कभी वतमान नहीं होता अत वतमान सस्कृति वा कोई विभाग भी क्यों हा | +-भौर इसीलिए सस्वृति आाधुनिव समाज के लिए सजावट जा समान हो जाती है । कुछ भय छोग होते हैं-और वे पहले वग से तो बुछ पेहतर ही होते हैं-जो सस्क्ृति को एक' जीवित वस्तु तो मानते हूँ पर उनका तात्पय एवं सम्ब'घ बलग साहित्य आदि वे' प्रति एक उदार सरक्षव भाव स ही अधिव हाता है। उनकी समय मे यह आना मुश्किल होता है कि यदि किसी समाज म बला और साहित्य को पर्याप्त जाथिर सरक्षण प्राप्त है लेविन अपने व्यापव जाचरण म वह समाज एवं शोपक, आततायी और हिंसक समाज है ता उसे सास्शतिक दृष्टि से भी अविकसित क्‍या कर कहा जा सकता है जबकि कला और साहित्य को वहाँ श्लाघनीय सुविधाए और सम्मान प्राप्त हैं। इस वग के लोगा वी नजर मे तो बला और साहित्य को पुरस्द्त वरने वारा वह व्यवित भी एवं सास्तिक व्यवित है जिसकी सारी सम्पनता अपन से इतर के शोपण और दमन पर टिय्ी है। यही कारण है वि दतिहास में दा चार दमारतें बनवा देने या उिसी झेसव विद्वान को अपने दरवार मे आश्रय दे देने के धारण ऐसे धर्माघ और अत्याचारी शासका और अन्य व्यवितया कप भी सस्द्ृति वा सरक्षय वहा यया है जिनवे जाय सारे कार्यो को निदनीय आर मानवविरोधी ही वहा जायेगा।




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