पर आँखें नहीं भरी | Par Aankhen Nahi Bhari

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Par Aankhen Nahi Bhari by शिवमंगल सिंह - Shaivmangal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छोड़कर नगरें दुम्हारों जा रहा हूँ याद तो होगा तुम्हें वह दिन सलोना-- जब तुम्हारे द्वार पर झ्ाया अकेला, शून्य नयनों में लगा था वेदना का मूक मेला । एक ही मुस्कान से जब भर दिया तुमने हृदय का रिक्त कोना याद तो होगा तुम्हें वह दिन सलोना ? में उसी सुस्कान की श्राभा चुराकर दिगूदिगंतों में छुटाने जा रहा हूँ। माद तो होगा तुम्हें वह गान मनहर-. जो सुनाकर स्नेहू का वरदान माँगा पत्रक-पललव की अरुएणिमा में मधुर मधुमास जाग्रा। सब




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