भट्टारक सम्प्रदाय | Bhattarak Sampraday

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Bhattarak Sampraday by विद्याधर जोह्रापुरकर - Vidhyadhar Johrapurkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावनां १५ अष्ठ अंग हैं। अतो के उद्यापन आडि के अवसर पर नियमित रूप स एकाघ प्राचीन अन्थ की नई ग्रति लिखा कर किसी मुनि या आर्यिका को दान दी जाती थीं | गणितसारसग्रह जैसे पाठ्य पुस्तको की कई प्रतिया शिष्यों के लिए, तैयार की जाती थीं। पुराने हस्तलिखित खरीद कर उन का सगम्रह किया जाता या। पुराने संग्रहीं को समय समय पर ठीक किया जाता था। अन्थों की मापा कठिन हो तो उन के समार्सों में टिप्पप लगा कर पढ़ने के लिए, साहाय्य किया जाता था। हस्त- लिखितो की अन्तिम प्रगख्तियों का ऐतिहासिक महत्त्व सरवैमान्य है। इस अन्य में सम्मिलित समयसार और पंचास्तिकाय की प्रतियो की प्रदास्तियां नमूने के तौर पर देखी जा सकती हैं । गणितसारसंग्रह की प्रतिया भी प्रातिनिधिक है। ७, काये- शिष्यपरम्परा जैन समाज में विद्याध्ययन की व्यवस्था कुरूपरम्पपा पर आधारित नहीं थी | शायद इसी लिए; वह ब्राह्मणपरम्पप जितनी सुदृदद नहीं रह सकी | यह कमी दूर करने के लिए, हमेशा शिष्य परम्पराओं के विस्तार का ग्रवत्त जैन साधुओ द्वारा किया गबा। भद्धारक सम्प्रदाय भी इस अबूत्ति को निभाता रहा। अन्थ के मूल पाठ से स्पष्ट होगा कि इस कार्य में भह्वारकों ने काफी सफलता प्राप्त की। अहम जिनदास, श्रुतसागरसूरि, पण्डित राजमकू आदि भद्दयारकशिष्यें। के नाम उन के गुरुओ से भी अधिक स्मरणीय हुए है। व्यक्तिगत महत््वाकांक्षा के फलस्वरूप जिस ग्रकार भद्यारक पीठों की इद्धि हुईं उसी प्रकार शिष्य परम्पराओं का भी प्रथक्‌ अस्तित्व रह सका। अनेक बार देखा गया है कि मद्दारको के जो शिष्य पट्टामिषिक्त नहीं हुए. थे उन की स्वतन्ध शिष्य परम्पराएं छह सात पीटियोँ तक चलतीं रहीं। गणितसारसंग्रह और शब्दारण॑व- चन्द्रिका की प्रशस्तियों मैं इस के अच्छे उदाहरण मिलते हैं। विभिन्न भद्धारक पीठो में सोहाद की रक्षा करने में मी झिष्यपरम्परा का महत्त्वपूणं उपयोग हुआ। दकिग के पण्डितदेव और नागचन्द्र जैसे विद्वानों का उत्तर के जिनचन्द्र और नानभूषण जैसे भट्टारकों स उहकार्य हुआ वह इसी का उदाहरग है। त्रह्म झ्वान्तिदास के सूरत और ईडर इन दोनो पीठो से अच्छे सम्बन्ध थ | इसी घपकार पण्डित राजमछ मी माथुर गच्छ की दो मिन्न झाखाओं से एक ही समय .सलम रह सके ये। कारजा के छाडबागड गच्छ के कवि पामो जैस शिप्यों'न ननन्‍्दीतट गच्छ के भद्यारकों से घनिष्ठ मम्बन्ध खापित किए. थे। इस दृष्टि से परत्पर




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