कविताएं | Kavitaen

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Kavitaen by रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचित हैँ भ्रुस॒ वी तड़प से, बन्धन से, अन्न के लिये विराट मानवन्सघर्ष से । दर्द मे बराह उठा भीतर से टूट सा गया मन । चाबन से मुक्ति नही, मिला नही श्राश्वासन । मन में कडवाहट से देखा जब घूम कर थूक दिया तुम पर और खुद अपने जीवन पर । आज तुम पास हो मासे भी श्रधिक तुम पास हो। में हुँ पर रक्त में सना हुमा, ञ रक्त जो वहा है व्यथ ही। सन से विदेशियों वे लड़ते हैं योद्धा जो तुम्हारे, उन्ही के रक्त से दम सा घुटता है रात का। मेरे प्रिय देश यह रक्त जो फट कर बहता है सालता है हृदय को, बेघता है मर्म को। जानना चाहता हैँ एवं बात-- वया अनिवार्य था यह रक्तपात ?




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