प्रगति और परम्परा | Pragati Aur Parampara

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Pragati Aur Parampara by रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक 'ौर जनता ३ इस चात की कोशिश में लगे हूँ कि जनता की ताक़त खर्म करके अपना प्रतिकियावादी रासन क्रायम कर ले । राज प्रश्न यदद है कि जनता स्वाधीनता की तरफ़ धढ़े या 'मँप्रेसों श्रौर उनके पिट सामंतों एंजीवादियों की युलामी स्वीकार करे ! हमारे देश में जिन्दगी श्वौर मौत थी लड़ाई छिड़ी हुई हूं । सबसे पहले हमें जन-हत्या को लपटों को घुकमनां हे; उसके धाद अंप्रेशों द्वारा दिन्नभिन्न की हुई 'धपनी 'मार्थिक, राजनीतिक '्रौर सामाजिक व्यवस्था पर ध्यान देना दै। इस संपष में सेखर्षों का कया स्थान होगा ? क्या वे इससे सटस्थ रहेंगे ? सया थे प्रतिक्रियादादी शक्तियों का साथ देंगे ? दोनों ही तरद से जनता का भविष्य अंधफारमय होगा चर इसफ़े साथ हमारा सादित्य और संस्कृति भी ग्सातल पे जायेंगे । में एक श्पाधीन देश का लेससक धनना हे । दम एक ऐसे देश फे लेखक है जो सदियों की रालामी ये धाइ फिर से जारी को साँस लेना चाइता दै। दस साँस दो चर्द करने पे लिये धढ़ेन्य हे सामंत 'दीर पूँजीपति 'दपनी गलियों से उसके गले फो देवा रहे हूं। प्रस्येके स्थाधीन देश फे लेखों ने ऐसी दशा में दे. ' ग्रतिद्धियादादी शक्तियों का विरोध दिया दे! कपनी शान ९ नयी पा गयी पी एव पीर गए गे जप




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