महावीर का अर्थशास्त्र | Mahaveer Ka Arth Shastr

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Mahaveer Ka Arth Shastr  by आचार्य महाप्रज्ञ - Acharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केन्द्र मे कौन ? मानव या अर्थ २५ वह महावीर के सिद्धान्तों को मानने वाला समाज था । पांच लाख लोग उस समय की दृष्टि से कम नही होते । लिच्छवी गणतंत्र का प्रमुख महाराज चेटक महावीर के उस व्रती समाज का एक प्रमुख सदस्य था । पूरा जैन इतिह्यस आज प्राप्त नही है । भारतीय इतिहास मे जैन तथ्यो की जितनी उपेक्षा हुई है, शायद किसी की नही हुई है । अनेक राजाओ, गणतंत्र के प्रमुख, जैन सेनापतियो और सार्थवाहो का इतिहास आधुनिक इतिहासकारों ने गायब कर दिया । यदि उनका इतिहास आज हमारे सामने उपलब्ध होता तो लिच्छवी, वज्जी आदि गणतंत्र महावीर के अर्थशासत्रीय सिद्धान्तो के आधार पर चलते थे, यह स्वयं तथ्य सिद्ध हो जाता । मौलिक अंतर महावीर ने एक ऐसे समाज को हमारे सामने प्रस्तुत किया, जो सयमी और व्रती समाज था। व्रत और संयम के सदर्भ मे हम आधुनिक अर्थशाशत्र और महावीर के अर्थशास्त्र की तुलना करे । पहला अन्तर तो मूल मे ही दर्शन का आएगा | आधुनिक अर्थशास्त्र एकांगी भौतिकवाद पर आधारित है । महावीर के अर्थशास्त्र मे भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद--दोनो का स्वीकार है। आधुनिक अर्थशास्त्र ने एक लक्ष्य बना लिया है--मनुष्य को धनी बनाना है। महावीर के अर्थशास्त्र का लक्ष्य था--मनुष्य शान्ति के साथ, सुख के साथ अपन जीवन बिताए। क्योकि शान्ति के बिना सुख नही मिलता । सुख शान्ति पूर्वक होता है । गीता मे कहा गया-- न चाभावयतः शान्ति: अशान्तस्थ कुतः सुखम्‌। भावना के बिना शान्ति नही होती और शान्ति के बिना सुख का सपना भी नही लिया जा सकता । प्रश्न केन्द्र और परिधि का एक ओर धन से मिलने वाला सुख है, दूसरी ओर शान्ति से मिलने वाला सुख है। भौतिकवाद के आधार पर धन+-सुख-- यह समीकरण बनेगा। महावीर के अर्थशासत्र का समीकरण होगा-- धन की सीमा+शान्ति और सुख । व्रत, संयम और सीमाकरण के संदर्भ मे हम महावीर के अर्थशाखत्रीय सिद्धान्तो का मूल्यांकन कर सकते हैं। इस सिद्धान्त का केद्धीकृत निष्कर्ष यह होगा--जहां व्रत है, संयम और सीमाकरण है, वहां अर्थशास्त्र के केद्ध मे मनुष्य रहता है, अर्थ दूसरे नम्बर पर रहता है । जहां ऐसा नही है, व्रत, सयम और नैतिकता का विचार नही हैं, वहां पदार्थ और अर्थ केद्ध में




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