श्री धर्मसंग्रह श्रावकाचार | Shri Dharmasangrah Shravakachar

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Shri Dharmasangrah Shravakachar by उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| बढ हीती तो सुझे हतना सेद नहीहोंता जितना खास अपने भाई के साथ प्रताग्णा करने से एपा।याह सप कारण सर अनुत्माह हाने मे सहा- ये थ। जब छद्दी २ मशुद्धि, भपरिचित छाद तथा अ्रमिष्ठ छाब्द खाजात उस समय मे नहीं कद सकता कि मर आत्मा मे किस २ प्रकार को द ये लार लबगंन लगती | परन्त उनके आान्त करने का मर पास उपाय हा क्या था 1 जस उनन्‍ह में अपन झात्म ख्नाकग् मं न उठने देता । इसी से इस संस्करण मे फितनी अश्चछ्धिय ठीक करन से रह गर ह तथा फिननही एस चाछ्द नष्ट गय है जा ठीक २ मेरी समझ में नहीं जाये | हसी से उनका अर्थ भी नहीं करसका । परन्तु ऐसे स्थल यद्टत थाई ए । यदि आप छागा की कृपायुद्धि स हितीय संस्करण फा खुसमय मिला तो इस सर्वाठ् सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया आयगा 1 वबेलरी यात इम अपनी आधुनिक भाण के सम्बन्ध मे लिखना हैं यह यह ह->याह प्रन्धरत्न भितना सनातन देवभाषा ( सम्क्ृत ) में हृहयहारी सयभासित होता हूं भाषा मे तो उसका सहस्राद्य भी नहीं हो सकता | यद अनुभव उनलोगा का अच्छी शरोति स है जी लोग सम्कृत भाषा फे विश ६ । परन्तु इससे यद्द नहीं कद्दा जा ना फि देश भाषा अलुपयांगी है। नहीं! मेरा ता सिद्धान्त है फि-इस समय मे जितना देशभाषा स जीबो का द्वितसाधन दो सकता है उतना ओर भाणा से शायद ही हो | इसललिय जिनलोगोका विद्यार प्राचीन प्रन्या के देशभाषा में अनुद्यादित ऐने की ओर खिंचा है उ॒त्त में घटतही उत्तम समझता हु। प्रत्येक पुरुष को खुशिक्षित चनाने भे यही पक श्ेयस्कर ओर उत्तम उपाय दे। अस्तु | घक्ृत चिपय पर झाईये--कितने महापुरुषा की तो देशभाषा भी एसी होती ६ जो हागो के मनफा सदसा अपनी आर झुका लता । परन्तु वद्द बात हमारा भाषा मे आना कासाोा दूर ए | इसालय इस ग्रन्चका भाषा कह्दा तेक रुचिफर ऐगी यह सु आशा नहीं होती | ओर न म॒ हिन्दी जानता ही हू. जा आपके सन्‍ताप लायक लिखफर अपन आत्मा मे भी सम्ताप सानलू। सन्तु रहे! जो कुछ सुझ छाट मा वाक्य इघर उधर जोड़ना साते ' रू उन्द्र ही छिप्रकर आप के सामन उपास्थत कय है । य दुर या अच्छे ? श्वका भार पाठक लोगो क ऊपर ६ चह्दा नेश्यय कर | ज




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