मध्यकालीन संस्कृत - नाटक | Madhyakalin Sanskrit - Natak

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Madhyakalin Sanskrit - Natak  by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हनुमन्नाटक बा पहले पद्ध के अनुसार सीता रावण का अधरपान करेगी या गिद्ध ही उसका अधरपान करेंगे। दूसरे के अनुसार रास के चित्त का आधा विरहानल से और दसरा आधा रोषपानल से दुग्ध बताया गया है । इसी प्रकार कवि ने राम का रोदन और मोद एक ही पाद में दिखा दिया तारं धीसानरोदीत्‌ तदनु सह मुदा वाहिदीमाजगास || १३.३१ कवि की दृष्टि साधारण नागरकों को सुवासित करने के लिए आयहाः #ंगारित है। उसे लझ्ला वनिता की भांति दिखाई देती है। यथा, हस + श्ाकारजघना रत्नद्यातटुकूलना लक्छामे के जिकूटस्य दचह्शुवनितासिव || ११.१३ कक ,, हेलुमन्‍नाटक का कुम्भकरण वारांगनाओं के गीतास्त से जागता है, अन्यथा नहीं । अद्भुत रस की निष्पत्ति इन अलौकिक पात्रों के प्रकरण सें होना स्वाभाविक है । यथा, कुस्मकर्ण की नाक सें हाथियों का यूथ घुसा जा रहा है सशकगलकरन्ध्र हस्तियूथ॑ ग्विष्टयू | ११.१४ राम ने कुम्भकण को देखा तो समझा कि यह कोई यन्त्र हैं । करुण रस के अनेक असंग हनुमन्‍नाटक में विद्यमान हैं। सीता ने देखा कि मेघ- नाद ने राम और लक्ष्मण को सार ही डाला तो उन्होंने विकाप किया-- प्राणेश्वरः प्रतिगिरं न ददाति रासो हा वत्स लद्सण समसापनयेन रुष्टः | महत्सलस्त्वमसि नोत्तरसाददासि आन्त्वा झुद॑ सम कृतेड्थ दिवं गतौ वा ॥ १२.८ करुण की स्वॉपरि निष्पत्ति उस प्रसंग सें है, जहाँ राम लक्षण को शक्ति छूगने पर रोते हैं। उन्हें उस अवसर पर भरत का स्मरण हो आया । यथा, हा ब॒त्स लक्ष्मण धिगस्तु समीरसूनुं यर्त्वां रणेडपि परिहत्य पराड्मुखोउ्भूत्‌ | गोपायतीह भरतस्तु ससानुजः कि यस्त्वासाधज्यघनुरुद्धतशाक्तिपातात्‌ ॥ १३.११ शेल्ठी हनुमज्नाठक की शैली संगीतमय अज॒प्रार्सो से अतिमण्डित है । यथा, पदश्चवटी का चर्णन-- हि रमन नि एपा पंचवटी रघृत्तमकुटी यत्रास्ति पंचावटी पान्थस्यैकघटी पुरस्क्ृततटी संश्लेषमित्ती बढी। गोदा यत्र नटी तरंगिततटी कल्लोलचब्चत्पुटी दिव्या सोदकुटी सवाव्धिशकटी मूतक्रियादुष्छुटी ॥ श२२० |




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