कलिका पुराण भाग - 2 | Kalika Puran Vol-2

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Kalika Puran Vol-2 by चमनलाल गौतम - Chamanlal Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कं प़्‌ब्हु वां श॒ कालिका पुराण के द्वितीय खण्ड पर दृष्टिपात करने से विदित होता हैँ कि यह एक विशेष योजना के अनुसार लिखा गया है ॥ इसके सभी अध्याय काफी बडे हैं ओर उनमें जो वर्णव किये हैं उनको सर्वाज्ध पूर्ण और विश्वद बनाने की चेष्टा को गई हैं। शिव-पांती का उपास्यान जा बनेक पुराप्रों और रामायण आदि में विस्तारपूर्वक क्या गया है, वह इस पुराण मे काफी परिवर्जित रूप में दिया गया हैं। इतना ही क्यों वही “कालिकापु य्रण” का मुख्य काघार है ! पार्वती ही “काली” कहलाती है और उद्ती को केन्द्र स्वर्प बनाकर इस खण्ड वा अधिकाश कथानक पूरा क्या गया है $ यद्यपि पषदती व जन्म, तवस्या और भगवान शिव के साथ उसके विवाह व) दघत इस प्राण मे भो पाया जाता है, पर उसमे स्थान- स्थान पर क्तिनी ही मिन्नताएं भी हैं ॥ इमम भी दारकासुर के वध के निमित्त झ्लिव-पावंती के विवाह और उनमे स्कन्द की उत्पत्ति की चर्चा है, पर साथ ही यह भी लिख दिया गया है कि इन दोनो के वियाह का विशदय पहले ही हो चुका था और पावती बहुत पहले से ही शिव जी वो सदा किया करती थी। जद कामदेव ने शिवजी पर झआाक्ष्मण जिया तो उस समय भी पाबंदी वहाँ उपस्थित यी ओर उसी को देखकर शिवजी को काम-वेग उत्पर हुआ था ॥ इसी प्रकार यह भी कहा गया है कि जिस समय पाती तपस्या कर रही थी उस समय शिवजी ने स्वव वेष चदल कर उसकी परीक्षा ली थी, और उसके आस्तरिक प्रेम का परिचय पाकर प्रणय को सिक्षा माँदो थी। पार्वती मे कड्ठा *सैं तो आपको पति बना ही चुकी है, पर आप मेरे पिता हिमबान के हाथों से मुके कन्यादान के रूप में ग्रहण कर, जिम्तसे




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