इतिहास समुच्चय भाषा | Itihas Samucchay Bhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इतिहाससमुच्चय भाषा।। रे३
शरीर में होते हैं वही हेतुरूप है ६७ इस कारण है लु
व्यक ! ओर बृद्धात्राह्मणी मे औओर मत्यु अथवा यह सर्प
हम तीनों इसमें कारण नहीं हैं यह वालकही अपनी
सत्य में कारण है ६८ दुःख सुख ओर जन्ममरणवाले
6 हर हर /, जल कप
आत्मा की आत्मा ही ऐसे यो कही जाती है जेते कि
अग्नि की योनि अरणी अर्थात् अग्निमथन काष्ठ होता
है ६६ भीष्मजी बोले कि; ऐसे कालसे समभाई हुई
हि मा धन लोकी को जानके
गोतमी ब्राह्मणी अपने कर्माधीन लोकों को जानके अ-
जननामी व्याधसे यह वचन बोली ७० कि है लुब्धक !
इस बालकके बधमें काल सर्प और रूत्यु यह तीनों का-
रण नहीं हैं यह बालक अपनेही कर्मके छारा काल पा-
कर झुत्युके वश हुआहे 9१ यह कम मेराही किया हुआ
है जिससे कि यह बालक मरगया है काल ओर रूत्यु
चजेजायँ और हे अर्जुन | तूभी इस सर्पको छोड़दे ७२
भीष्मजी ने कहा कि यह सुनतेहीं काल और स्त्युतों
जहांसे आये थे वहीं चलेगये और अजुन व्याध समेतः
भोतमी भी शोकसे निठत्त हुई ७३ है राजन | ऐसो जान
कर त शोक से शान्त होजा और_ चिन्ता में तसर मत
हो इन लोकों को कर्माधीन जांनके जन्म विवाह भर
कोभी कर्मही के आधीन जानो ७४ है पार्थ यह कर्म तैंने
नहीं किया है ओर दुर्योधनादिकीने भी नहीं किया किन्तु
यह संघ कर्म कालकेही किये हुये है जिससे कि सब राजा
लोग हत होकर नष्ट होगये वेशंपायन बोले कि; घर्म-
पत्र युधिष्ठिर ऐसे मीष्तजीक वच्ननकां सुनकर ज्ञाति .
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