सती शिरोमणि वसुमति अपर नाम सती चन्दनबाला | Sati Shiromani Vasumati Apar Naam Sati Chandanbala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
474
श्रेणी :
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जवाहिरलाल जैन - Javahirlal Jain
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हुक्मीचंद जी -Hukmichand Ji
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७ पिचाह या धगचर्य
को सुनाये । वसुमति के विचार सुन कर, धारिणी बहुत प्रसन्न
हुई | वह, अपने मन में कहने लगी, कि--जिस पुत्री के ऐसे
उदार विचार हैं, उसकी माता में! धन्य हूँ। में विचार ही रही
थी, कि सेरी पुत्री के द्वारा, मानव-समाज फा कुछ हित हो और
बह, सानव-समाज के सामने नूतन तथा उ्र आदर्श रख सके !
जान पढ़ता दै, कि मेरी यह भावना पूर्ण होगी । आजकल संसार
में, स्त्री-पुरुप विषयक उलमने चहुत घढ़ रही हैं । यद्यपि सत्री-
पुरुष का सहयोग-सम्बन्ध, सांसारिक-जीवन सुख-पू्ेक बिताने के
लिए होता है, लेकिन 'आजफल जैसे यह, उद्देश्य विस्मत कर
दिया गया है और सांसारिक-जीवन, सुख-पूर्वक बिताने के बदले,
उलसनदार बना लिया गया है। वसुमति के विचारों से जान
पढ़ता है, कि वह, इस प्रकार की उलमलनों को मिटात्रेगी । लेकिन
क्या पता है, कि वह, कैसे पुरुष के साथ विवाद्दी जावेगी, और
उसको स्वयं की भावना, कारये रूप में परिणत करने का अवसर
, भी मिलेगा, या नहीं | कोई ऐसा मार्ग हो तो अच्छा है, जिससे
, चमझुमति की भावना भी कायोन्विद दो, उसका, जीवन भी .सुख-
: पूर्वक बीते और मेरा साता चनना भी सफल हो ।
रात के संमय. महाराजा .द्धिवाहन, धारिणी के महल में
: आये ।-उस् समय तक धारिणी, वसुसतिके .ही विषय में अनेक
£ अकार के विचार कर रही थी ।.दधिवाहन के आने पर धारिणी
बे
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