स्वामी शिवानन्द | Swami Shivanand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.46 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्पामी दिदानन्द ्ट
धर इसी कारण इस नदीकां नाम सान्परणी पढ़ा भी है। दि
इप्रको दक्षिगणगा कदते हैं और मंगाकी त्तरद दी इसको पावन शौर
घूउ्य भी सममकते हैं । इस नददीवा जल शत्यन्त श्वाइथ्यग्रद और
पवाचक है। इसी नदी एक मंदर निवली दै जो पटामदाईक चारों शोर
शारसदश दयोकर बदती है । जिन्होंने अयोध्या और ररयूकी स्यित्ति
देखी होगी थे पट्टामदाई शौर इस नदरकी ्थितिदी कल्पना कर
सकते हैं । एसा रमणीक यद्द पट़ामदाई ग्राम दै ।
पट्टामदाई तिरनेवेठी जकधनते दस मीलकी दूरी पर र्पित है ।
इस स्थानकी मुन्द्रतामें दो अन्य बातोलि यृद्धि दो जाती है । एक तो
थदा धानके लद्वराते हुए दरेनदरे सेत देखनेको मिलते हैं दूसरे इस
ऊामके चारों भर दर तक आमके वाग फटे हुए हैं. पट्टामदाईमें
हुसी सुन्दर और कलापूर्ण चटाइया बनती हैं जैसी सरसारमं कहीं मी
नदीं बदतीं । इस पाममें सुप्रसिद्ध सस्कतज स्वर्गीय श्री रामदेप
सप्यर द्वाय सस्यपित एक द्ाईस्कूल भी है । इस धामकी सबसे बड़ी
विशेषता दे अधिक संख्या समीतज्ञॉकी उत्पत्ति । इस गाववके सभी
लोग सगीत्रेमी द्वोते हैं और अत्यन्त उ्च कोटिके कलापूर्ण गाने घर,
सकते हैं । पट्टामदाईको समारके छुठ विशिष्ट समीतजञको उस्पनन
करनेका श्रेय है [ श्राकृतिक छटासे पूर्ण इसी मनोरम और उिंदिट
गाविसें थो मी डुप्यू स्वामीका जन्म हुआ था 1
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