प्रवचन डायरी १६५३ | Pravachan Diary

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Pravachan Diary by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शत (5 & : धम ओर मनुष्य ६ विदाई बी ि पूर्व € 8: विदाई के प्र॒व आज विदाई है। साधु के लिए जैसा आगमन है बेसा ही गमन है | वैंसे मी आग- मन कहाँ का गमन होता है| इसका न तो दुःख है और न इसकी जुशी। गमन का दुख तो उन लोगों के लिए होता है जो आकर जाना नहीं चाहते--जमकर एक ही जगह रहना चाहते हैँ | पर हम तो साधु हैं। साधु रमते ही भले | आज विदेश के लिए प्रस्थान है| लोग पहले मेवाड़ ओर माखाड़ को देश समका करते थे क्योकि पूर्वांचा्य ज्यादेतर उधर ही रहते थे | थल्ली मे पधारते भी थे तो उस समय थली विदेश सममा जाता था | आज वह देश है | श्रावक साधु-सघ के अनुशासन से सबक लें | वें आपसी ईर्प्या-मत्सर की कल॒प भावना को जड़-मूल से समाप्त कर आत्मविश्वास रखें। हमारा सम्बन्ध एक हंष्टिसे गहस्थों से है और दूसरी से नहीं मी | उनके त्याग-प्रत्याख्यान से--नैतिक उत्थान से हमारा बहुत कुछ सम्बन्ध है, पर उनकी सावब्य प्रवृत्तियों से नहीं। वे कलुपित मावनाओं से बचें और नैतिक उत्थान करें| इसी में सघ का और उनका अपना उत्थान है-कल्याण है| तरदारशहर ५ फरवरी १५१ ५: भजन ही करे मानव जीवन हीरे के ठ॒ल्य कीमती है | इसे यो ही नहीं गंवा देना चाहिए, | त्याग- तपस्या व्यक्ति से न भी हो सके तो कम-से-कम सुबह दो घडी मन को शुद्धकर, उसके मैल--ईध्ष्या और मत्सर को तजकर परमात्मा का भजन ही करे | मीतात्तर ७ फरवरी '५३ ( दोपहर ) ६ : धर्म क्र मनुष्य धर्म ही सार है| विना धर्म के मानव, मानव नहीं । पर धर्म है क्या? किस बला को धर्म कहते हैं? ज्षत्रिय हाथ में तलवार रखे, पक खेती करे, बनियाँ व्यापार करे, यह धर्म नहीं है। ये तो उनकी अपनी-अपनी सामाजिक व्यवस्थाएँ हैं। घर्म का वर्गोकरण नहीं हो सकता कि अमुक धर्म मेरा है ओर अम्रुक उस्तका। यह तो व्यक्ति का “अपना कार्यक्रम है। तो फिर धर्म है क्या १ धर्म है--सत्य और अहिंसा | झूठ मत बोलो,




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