संस्कृत का भाषाशास्त्रीय अध्ययन | Sanskrit Ka Bhashashastriya Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आक्रधन विद्धकै भाषा-परिवारोमें भारत-यूरोपीय भाषा-परिवार वृहत्तम परिवार हैं, जिसकी भाषाएँ यूरोपसे लेकर भारत तक व्यवहृव होती है। सस्कृत इसी परिवारको मुख्य भापा है। इस दृष्टिसे संस्कृतका ग्रीक, लैटिन, प्राचीन चर्च सछावोनिक-जैसी प्राधीन भाषाओसे घनिष्ठ सबन्य हैँ 1 पार- सियोकी धर्मपुस्तक अवैश्ताकी भाषा तथा बैंदिक संस्कृतकी प्रकृति तो परस्पर इतनी निकट है कि उन्हें एक ही भाषाकी दो विभाषाएँ घोषित किया जा सकता है १ यूरोपीय जगतुकों संस्कृत भाषाका परिचय मिलनैपर १६ वीं शतीमें यूरोपमें म्रपाविज्ञानके क्षेत्रम जो उन्नति हुई, उसने ग्रीक, लैटिन, अवेस्ता तथा संस्कृतकी प्रकृतियोका तुलनात्मक अध्ययन कर इस विपयका अन्वेषण किया कि इन भाषाओके बोलनैवाले पूर्वजज आरम्भमे एक-सी ही भाषाका व्यवहार करते होगे। इसीके आंधारपर आदिम भारत पूरोपीय जैसी कल्पित भाषावी अवतारणा की गई। प्रीक, लेटिन तथा सस्कृतमे नि.सन्देह इतनी अधिक ध्वन्यात्मक और परदरचनात्मक प्रमावताएँ पाई जाती है कि उपर्युक्त निर्णयपर पहुँचना स्वाभाविक हैं। भारत-यूरोपीय भाषाशञास्त्रकी दिशामे इलेग्रेल, रास्क, प्रिम, फ्रेज बॉप, इछेखर, ब्रुगमान, मेये, वाकेरनागेल, ज्यूल ब्लॉल-जैसे यूरोपोय विद्वानोने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है! इस दिशामें अधिकतर कार्य फ्रेंच तथा जर्मन भाषाओके माष्यमसे हुआ है, तथा आमग्ल भाषामें भी इस विपयमे कुछ पुस्तकें दृष्टिगोचर होती है । अब तककी समस्त भाधाशास्त्रीय गवैधणाओको ध्यानमें रखकर लिखी गई दो पुस्तकें अंगरेजोने पाई जाती हैं, जो खा तौरपर संस्कृत भाषापर लिखी गई है; एक ० घोपको पुस्तक, दूसरों प्रोफेसर बरोकी पुस्तक 1 प्रोफेसर बरोकी पुस्तक अभो दो-तीन वर्ष पूर्व ही प्रकाशित हुई है। इस




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