प्रम्लोचा | Pramlocha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
815 KB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रादुर्भाव 4- २५
प्रभात का,
कभी किसी सोये तरु को
झकझोर जगाता
कभी किसी अलसाई
लतिका से कहता--
“जाग बावरी!
कभी कभी शतदल के
कानो में कूड.. कहता
सरिता से कछत्ता,
“उठ उठ, बीती विभावरी!”
कभी कभी तट पर
जब वह जल्दी आ जाता
था हो जाती देर
कभी मुनि को आने मे
सरिता तट पर,
वह उनका भी उत्तरीय
ले उडता प्राय
कर लेता थोडा-सा लडकपना
और ध्यान जैसे ही मुनि का
जाता उस पर,
मुंहलगे भृत्य सा कह लेता--
“पा-लागौ मुनिवर!!
मुनि के भी था कौन
वीतरागी थे, एकाकी थे
उस निर्जन मे
ले दे कर
ये ही उनके
सगी साथी थे।
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