मृच्छकाटिकभाषा | Mrichchhkatikabhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुच्ठकटिकसापा १६
मैपे--जब फिर चारुद्त की बढ़ती द्वोगी।
सस्था--हैरे पाज्ी घरुए ! हम तुक्क से कहते हैं, तू हमारी शोर
से द्रिदी चारदत्त से कद कि यद्द सोनेघाली नया नाठक देख कर
उठी सूचधारों सी रही को लड़की घसतसेना कामदेव के बाग के
भेल्रे के दिन से तुम्हें घ्राहवो है, हम जोग उसे घरजेरी पकडमा
चाहते थे से। तुम्हारे घर में घुछ गई, उसे तुम ध्याके दमारे हाथ
सौंप दे नहीं ते मरते दम तक हमारा तुम्दवारा वैर रद्देगा। प्लौर
देखे--
कुम्दिडा डठल माँध्ठि जब गोयर धरों जगाय। .
माँस वघारी घीष में धरे ज्ञे साथ खुसाया॥
भक्फर्ण, चुरकोों ऋतु देमत को धरे राति फो भात।
धरती रहे धासोी तऊ कबचहेँ नाँधि बसात॥
भ्रच्छी तरद्द फदना झौर फद पद कट्द डालना औौर ऐसा कद्दना कि
हम प्रपने मद्दल से बेंगले पर से बैठे बैठे सुर्में । न कद्दोगे ते कीये
के गोले की भाई तुम्दारा सिर तोड़ उालेंगे।
मैम्े--पअचब्छा कह्द देंगे।
सस्या--( ध्यजग वधलु५ से ) विद ज्ञी गये !
स्थावरक--जो हा 1
सस्या--तो हम भी भागे ।
स्थाष--क्षी ज्ञिये, तलवार न्वीजिये |
सस्घा--त॒म्दीं लिये रहे ।
स्थावच--नदीं सरकार, शाप ज्ीजिये।
सस्या--( उस्यो तजधार पकड़ कर )1
घड़े मर अंग खुली तरघारि।
डारि यान महँ काँघे घारि॥
जख्तरि फूकुर ज्यों पीछे जागत।
स्पार सरिस में घर के भाषत ॥
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