धम्मपंद | Dhammpadam

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Dhammpadam by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे ) चित्तवग्गों [ १३७ दोष; मोह) के फन्‍्देसे निकलने के लिए यह चित्त (तदफछाता है) । शआवस्ती कोई ३५--दुन्निग्गहस्स लहुनो यत्थ कामनिपातिनों । चित्तस्स दमथो साधु चित्त दन्‍्तं सुखावहं ॥॥३।॥। ( दुर्निग्रहस्य लघुनों यत्र-काम-निपातिन । चित्तस्य दमन साधु, चित्त' दान्‍्तं खुखावहम ॥३॥ ) अनुवाद--(जो) कठिनाईसे निग्नद योग्य; शींघ्रगामी , जहाँ चाहता है वहाँ घला जानेवाला है; [ऐसे] चित्तका दुमन करना उत्तम ऐ, ठमन किया गमा चित्त सुखद होता है । आवस्ती कोई उत्कणिठ्त सि ३६--सुदुहस सुनिपुरप्त यत्थ कामनिपातिन । चित्त रक्खेय्ण सेघावी, चित्त गुत्त सुखावहं ॥४॥। ( खुद॒दंशं खुनिषु्ं. यत्र-कामनिपाति । चित्त रक्षेत मेधावी, चित्त श॒ुप्तं खुखावहम ॥४॥) अनुवाद--कठिनाई से जानने योग्य , अत्यन्त चाल्ाक , जहाँ चाहे वहाँ ले जानेवाले चित्तकीं , बुद्धिमान रक्षा करे ; सुरक्षित चित्त सुखप्रद होता है । श्रावस्ती संघरक्खित (थेर) र७-द्रड्धम॑ एकचर असरीर गहासय॑। ये चित्तं सञ्मसेस्सन्ति मोक्‍्खन्ति सारवन्धना ॥५॥




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