आदर्श भ्राता खंड काव्य | Aadharsh Bhrata Khand Kavya

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Aadharsh Bhrata Khand Kavya  by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) कसी तेजगति को मंदगति पवन बनाता चलता । अपनी गति से चलने वाला पाता वयों न सफलता 1१३२२। सहस्त्रांशु की उप्ण रब्मियां, घरती को न तपाती । तरुपों की छाया से णीतल, जब वसुधा की छाती 1१३३। दौड़ रहे है इत-उत वानर, सुतकर सिंह आवाज । क्योंकि समृचे वत पर करता, सिंह अकेला राज 1१३४। चीते, भालू और वधेरे, हरिण दौडते दीखे । भय आने पर जान बचाने, कौन नहीं कहां चीखे 1१३५। वनहस्ती मस्ती में आकर, डोल रहे है वन में । कहते हमने वल पाया है णाकाणी जीवन में 1१३६। वन महिपों की कहीं लड़ाई नहीं नजर क्‍यों आती । हर जीवन में ही होते है. साथी और अराती 1१३७। गणक भाडियों में छिपकर के देख रहे दृश्मन को । रुकने को कहते है, आगे-खतरा है जीवन को 1१३८५। वन का भाव जलाती श्राती, नजर कही पर झाग । कथा कपाय जलाया करते, त्याग और वेराग 1१३६९। मनमानी यति ध्वनि से चलता, निर्भर वाला पानी । अपना रास्ता स्वयं ढूढते, ऊंचे साधक ज्ञानी 1१४०। सदियों से बहती है नदिया, वन्धन नहीं किसी का । पवित्रता से जीवन जियो, जीना नाम इसीका 1१४१। ऊंजी ऊची पव॑त माला, चढने को कहती है । जीवन की ऊचाई पर ही, श्रच्छाई रहती है 1१४२। सीधे आटे काटे कहते, हम पर हाथ न डालो । बुलवाश्ोगे और किसी को, भाई इन्हे निकालो 1१४३। खिलते स्वयं, स्वयं मुरफ्ाते, रंग बिरंगे फूल । जन्म मत्यु की अठल प्रक्रिया, प्रकृति ने अनुकुल 1१४४




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