आदर्श भ्राता खंड काव्य | Aadharsh Bhrata Khand Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
कसी तेजगति को मंदगति पवन बनाता चलता ।
अपनी गति से चलने वाला पाता वयों न सफलता 1१३२२।
सहस्त्रांशु की उप्ण रब्मियां, घरती को न तपाती ।
तरुपों की छाया से णीतल, जब वसुधा की छाती 1१३३।
दौड़ रहे है इत-उत वानर, सुतकर सिंह आवाज ।
क्योंकि समृचे वत पर करता, सिंह अकेला राज 1१३४।
चीते, भालू और वधेरे, हरिण दौडते दीखे ।
भय आने पर जान बचाने, कौन नहीं कहां चीखे 1१३५।
वनहस्ती मस्ती में आकर, डोल रहे है वन में ।
कहते हमने वल पाया है णाकाणी जीवन में 1१३६।
वन महिपों की कहीं लड़ाई नहीं नजर क्यों आती ।
हर जीवन में ही होते है. साथी और अराती 1१३७।
गणक भाडियों में छिपकर के देख रहे दृश्मन को ।
रुकने को कहते है, आगे-खतरा है जीवन को 1१३८५।
वन का भाव जलाती श्राती, नजर कही पर झाग ।
कथा कपाय जलाया करते, त्याग और वेराग 1१३६९।
मनमानी यति ध्वनि से चलता, निर्भर वाला पानी ।
अपना रास्ता स्वयं ढूढते, ऊंचे साधक ज्ञानी 1१४०।
सदियों से बहती है नदिया, वन्धन नहीं किसी का ।
पवित्रता से जीवन जियो, जीना नाम इसीका 1१४१।
ऊंजी ऊची पव॑त माला, चढने को कहती है ।
जीवन की ऊचाई पर ही, श्रच्छाई रहती है 1१४२।
सीधे आटे काटे कहते, हम पर हाथ न डालो ।
बुलवाश्ोगे और किसी को, भाई इन्हे निकालो 1१४३।
खिलते स्वयं, स्वयं मुरफ्ाते, रंग बिरंगे फूल ।
जन्म मत्यु की अठल प्रक्रिया, प्रकृति ने अनुकुल 1१४४
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