दर्शन और जीवन | Darshan Aur Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
कि उससे सम्बद्ध नाड़िजाल प्रकम्पित होकर धाक्षुषकेन्द्र में एक
विशेष प्रकार का क्षोाभ उत्पन्न कर रहा है, जिसके कारण हमारे अन्तः-
करण में वह विशेष अनुभूति हो रही है जिसे अमुक रंग कहते हैं ।
एक छोटे-से वाक्य की बड़ी लम्बी व्याख्या हो गई, पर इसके सिवाय
इस वाक्य का कोई दूसरा अथ नहीं है। इस वर्णन में हमारी मानस
अनुभूति, चाक्षुषकेन्द्र के क्षाभ, चालश्लुष-नाड़िजाल के प्रकम्पन, हमारी
आंख और वस्तु के बीच में प्रकाशलहरियों की गति और उस वस्तु
के कम्पन का तो हमको ज्ञान हुआ, पर वस्तु का ज्ञान कहाँ हुआ ?
अधिक से अधिक इतना ही तो कहा जा सकता है कि कोई वस्तु तो
होगी, नहीं तो यह तरज्गञ आदि की परम्परा केसे आआरब्ध होती | पर
वह वस्तु क्या है, कैसी है, इसका तो कुछ पता नहीं चला।
चक्षुरिन्द्रिय का हम अधिक विश्वास करते हैं, उसके द्वारा करोड़ों
कोस दूर की चीज़ों का परिचय प्राप्त करना चाहते हैं, इसी लिए यह
अंश कुछ अधिक विस्तार के साथ लिखा गया। परन्तु इसी प्रकार
के आंत्तेप उस ज्ञान के विषय में किये जा सकते हैं जो दूसरी किसी
भी इन्द्रिय के द्वारा प्राप्त होता है। पहले तो यह सन्देह रहेगा कि
शब्दादि की जो अनुभूति हमको हुईं है वह केवल नाड़ियों और
मस्तिष्क के तत्तत् केन्द्रों के विताड़ित होने से हुई है या किसी बाहरी
वस्तु के कारण और, फिर, यदि कुछ निश्चित भी होगा तो इतना ही
कि बाहर कुछ है जो हमारी इन्द्रियविशेष को प्रभावित करके हमारे
अन्तःकरण में एक विशेष अनुभूति उत्पन्न कर रहा है ।
हमको केवल अपनी अनुभूति का--प्रकाश, शब्द, रस, गरमी
आदि का--प्रत्यक्ष, अव्यवहित ज्ञान होता है। वस्तु का ज्ञान अनुमित,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...