श्रीमद्वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड | Shrimadvalmiki Ramayan Yuddh Kand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
79 MB
कुल पष्ठ :
727
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युद्धकाणड-उत्तराद्ध
को
विषयान क्रमणिका
अड्सठवाँ सग ६९७७-७० ३
द युद्ध से भागे हुए राक्तसों द्वारा कुम्मकर्ण के मारे
जाने की सूचना रावण के मिलना । दुस्भकर्ण के लिये
रावण का वचित्ताप । डस समय रावश के विश्ीषणशा को
बातों का स्मरण होना ।
उनहत्तरवाँ सर्ग ७०३--७२७
त्रिशिर का रावण के प्रश्वासनप्रदान | जिणिरा
अतिकाय, देवान्तकऋ, नरान्तक, महादर, महाकऋाय प्यादि <'
युद्धद्देव-यात्रा । वानर्गों शोर राक्तसों का घार युद्ध । नश-
न्तक का चानरो सेना के ध्वस्त करना। वानर सैन्य का
नाश दात देख, सुग्रीव को पशडूद के प्रात उक्ति | तदनसार
अहुद का युद्ध के लिये आगे बढ़ना । नर।न््तक और घ्यड्भद
का सुद्ध । नरान्तक का श्दुद के हाथ से बच |
सत्तरत्रा सम चर लत व
दवान्तक, जिशिरा, महादर का अज्भद के साथ यद्ध ।
दवानतक का बच । महादर का वच्च | त्रशिश का लथ ।
उनन््मत्त रात्तस के साथ हरियूथप गवातक्ष का युद्ध । उन्मत्त
गत्तस का गतात्त द्वारा वध ।
फकण्परवा सगे छे-
भाई, चला ध्रांद के वध से ऋष है, भतिकाय का
युद्ध के लिये निकलना । आतिकाय की मार से वानरों का
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