श्रीमद्वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड | Shrimadvalmiki Ramayan Yuddh Kand

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Shrimadvalmiki  Ramayan Yuddh Kand  by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युद्धकाणड-उत्तराद्ध को विषयान क्रमणिका अड्सठवाँ सग ६९७७-७० ३ द युद्ध से भागे हुए राक्तसों द्वारा कुम्मकर्ण के मारे जाने की सूचना रावण के मिलना । दुस्भकर्ण के लिये रावण का वचित्ताप । डस समय रावश के विश्ीषणशा को बातों का स्मरण होना । उनहत्तरवाँ सर्ग ७०३--७२७ त्रिशिर का रावण के प्रश्वासनप्रदान | जिणिरा अतिकाय, देवान्तकऋ, नरान्तक, महादर, महाकऋाय प्यादि <' युद्धद्देव-यात्रा । वानर्गों शोर राक्तसों का घार युद्ध । नश- न्तक का चानरो सेना के ध्वस्त करना। वानर सैन्य का नाश दात देख, सुग्रीव को पशडूद के प्रात उक्ति | तदनसार अहुद का युद्ध के लिये आगे बढ़ना । नर।न्‍्तक और घ्यड्भद का सुद्ध । नरान्तक का श्दुद के हाथ से बच | सत्तरत्रा सम चर लत व दवान्तक, जिशिरा, महादर का अज्भद के साथ यद्ध । दवानतक का बच । महादर का वच्च | त्रशिश का लथ । उनन्‍्मत्त रात्तस के साथ हरियूथप गवातक्ष का युद्ध । उन्मत्त गत्तस का गतात्त द्वारा वध । फकण्परवा सगे छे- भाई, चला ध्रांद के वध से ऋष है, भतिकाय का युद्ध के लिये निकलना । आतिकाय की मार से वानरों का




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