कृष्ण भक्ति साहित्य वस्तु स्त्रोत और संरचना | Krishn Bhakti Sahity Vastu Strot Aur Sanrachana

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Krishn Bhakti Sahity Vastu Strot Aur Sanrachana by डॉ. चन्द्रभान रावत - Dr. Chandrabhan Rawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है ।/*५ ब्रज का प्रतीकत्व स्वयं आचाये वलल्‍लभ और गो० विट्ठुलनाथ जी ने स्वीकार किया है। श्री वल्लभाचाय जी ने ब्रज का ब्रह्मत्व स्व्रीकार किया है। वृन्दाबन, गोवध॑न आदि को उन्होंने गुणातीत कहा है ।*” गो० विटुलनाथ जी ने श्रुति-यूथ के आग्रह पर भगवान क्ृष्ण के अवतार की गाथा लिखी है। इस प्रकार ब्रज को प्रकट करके भगवान ने गोपी रूप में अवतरित ऋचाओं की रमणेच्छा पूर्ण की ।* इस प्रकार ब्रज एक प्रमुख संप्रदाय का प्रधान पीठ बने गया । आचाय॑ वल्लभ ने स्वयं ब्रज के लीला स्थलों की खोज के लिए ब्रजयात्रा की ।* * कहा जाता है कि आचाय॑ प्रभु ने नारदपुराण को अपनी यात्रा का आदर्श बनाया। वललभाचार्य जी ने स्थलान्वेषण में मथरा के उजागर चौबे से सहायता लेनी चाही । स्कन्दपुराण में उल्लेख है कि वज्रनाभ ने मथुरा में माथुर बाह्यणों को बसाया । इसको दृष्टि में रख कर ही सम्भवतः आचाये जी ने इनसे सहायता की आशा की। पर उन्हें निशश ही होना पड़ा । इसीलिए उन्होंने अकेले ही स्थलान्वेषण के लिए यात्रा की : “उजागर चौबे को बचन लेई मर्यादा राखिने के लीयें पीछें विध्योक्तमनः पूर्वक संकल्प करि विश्ान्त ते प्रारम्भ जन्मस्थल पधारे । ““' पीछें चौबे नें बीनती कीनीं के मैं साथ आऊँ तब श्री जी कह्यौ क॑ तुम्हारो कहां काम है : तुम्हारों बचन लैनो है सो तो लीयौ यह कहि चौबे की बिदा कीनीं ।/*५ आज के यात्रा-क्रम से ज्ञात होता है कि आचाय॑ जी ने पहले गिरिराज क्षेत्र में स्थलान्वेषण किया | इस क्षेत्र में स्थित श्रीनाथ जी उनके उपास्य बने । गिरिराज के 'मुखारविन्द! की ओर सम्भवतः आचाय जी ने ही पहले संकेत किया । इस संकेत ने गिरिराज को इश्टदेव का मानवीक्ृत मूतं रूप प्रदान किया । इससे पहले वे विश्राम घाट का उद्घाटन कर चुके थे : इससे पूर्व यह स्थान श्मशान था। इस प्रकार यमुना और गिरिराज दोनों ही क्षेत्र आचायंजी की यात्रा में प्रमुख हुए । वात्सल्य भाव से अभिसिचित 'गोकुल' की खोज भी यमुना के तट पर हुई । महावन ( --प्राना गोकुल ) की तुलना में वल्‍लभोक्‍्त गोकुल को नया गोकुल' या भुरसाँइयों' का गोकुल कहा जाता है । ब्रज में वल्लभ संप्रदाय की प्रमुख गद्दी गोकुल में ही है । वललभाचाय जी के पक्चातृ श्री गो० विट्रलनाथ जी ने ब्रज की यात्रा की ।* ब्रजयात्रा का विषय ब्रजभाषा के गद्यकारों के लिए आकर्षक रहा । इस विषय पर ब्रजभाषा की कई क्ृतियों की खोज हो चुकी है ।* * “ब्रज की यात्रा में चौरासी कोस की पैदल यात्रा को धामिक रूप दिया गया । इसमें कौन-कौन से स्थान श्री कृष्ण के जीवन से किस प्रकार सम्बन्धित हैं, इस विषय के साहित्य की रचना हुई है। समय- समय पर बहुत से भक्तजन और सम्प्रदाय के आचार्यों ने ब्रजप्रदेश के भक्ति-स्थलों की १४ : स्थलोय संदर्भों की खोज




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