अणुव्रत की ओर भाग - 2 | Anu Vart Ki Or Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनि श्री नागराज जी - Muni Shri Nagaraj Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६
राप्ट व सस्कति का नव निर्माण
--मी पुष्यौत्तमदाल भार्भध
इस समाज में जहां बैज्ञातिक युय भाय बड़ता बल्ता था रहा है बहां हम यह
नहीं चाहत कि झपते जीवश का बहुमूस्््प समय प्राष्पारिमिकता की प्रोर क्ष्च न
करें। जाएदीय संस्कृति सर्व श्याय प्रबात रही है भौर देशवासियों का प्राचराप
भौ भ्रक्छा रहा है। चिरकाल ठक जीवित रहने बाले महपि-महारमाओं न भी भही
कहा है कि मानव माज का भाच र ण॒ प्रष्छा हो । पधुप्रों के समास प्राचरण न हो 1
बैसे यह संसार गृख भौर प्रबगुण मणाई भौर बुराई दा्सों की खाग है ।
हम दूध से बुकानों पर जाते हैं। भगर हम #स होस तो दूध को चुन मैते भौर
पानी को स्याप देते । इसीलिए संसार के समस्त मुर्ग्यो को रूमे के लिए हम सदा-
अरगौय अनना 'बाहिए। परमारमा म॑ जिस स॒पष्टि की रचना की ई बहां मशाई
के साप शुराई भौर्पदा हो मई ई। सेकिल पराज्रार्य भी तुलसी जैपों क छाप
रहकर हम जान सकते हैं कि हमें प्रपत जीअल में कौस-सा मार्ग प्रपगाना
जाहिए। धगर इसमें सत्युरुप बनना हूं तो सदुपदेर्शो का ही प्राचरण करना
चाहिए । प्रगर हमे पपने समाझ रा द मस्तृति का कस्याण करना है तो प्राचार्य
श्री हुलसी के मार्ग पर चलता 'बाहिए।
हम प्रपणे जीबत में धरपुद्वत क हारा प्रमैदातेक बड़-बढ़े कार्य थ सुधार कर
सकते हैं। इतों कै हरा हम प्पने जोबस को बिकासोन्मुख व सदाचरपीय
बता सदते हैं। मानय ऊीबत के ब़्पाण के लिए पंथ महादर्तों गा पालन
काना प्राबश्पक है । ध्राचाय श्री तुशसी के उन सम्दों को मैं भूल गहीं सकता
हि श्रद्धा भौर दिप्बास गय सेकर ही हम समाज को उस्नति के मार्ग पर प्रद्भार
कर सफते हैं ।
१३
User Reviews
No Reviews | Add Yours...