शंखनाद | Shankhanad

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Shankhanad by आनन्दिप्रसाद श्रीवास्तव - Aanandiprasad Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ सयमराय का सयम अनिल-मरइल मन्थित था हुआ, गगन भी रज-गुम्फित था हुआ | पिशद-ब्यूह-समूह रे गये, रण अनेक प्रकार मये नये। प्रपर बुद्धि अनीपति व्यग्न थे, बहु समुत्सुक चीर समश्र थे। हिविध थे द्ुफ्फेतन यों उडे, मनुज़-नाशऊ-शासक ज्यों जुडे। चरणु-घात सहस्त सदृस्त थे, बट सहस्न प्रचलित शस्त्र थे। कयस घर्षित द्व्य अजस्त थे, अति घुम्ुक्तित पावक-अख थे। रण का इग्रिता हुआ, दनादन बहु सख्यक तोप. छूटीं, धिपुज-शिरों के शुरुसागर पर मंघों से विज्ञली हइटीं।




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