अछूत एक सामाजिक नाटक | Achhut Ek Samajik Natak

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Achhut Ek Samajik Natak  by आनन्दिप्रसाद श्रीवास्तव - Aanandiprasad Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य हे शअचछ्च सकते हैं ? मन्दिर भी अशुद्ध हो जायगा, ठाकुर जी भी अशुद्ध द्वो जायेंगे । अछूत-पुजारी, तोहरे याव परित है हमका भीतर ज्ञाय देव । ठाकुर जी तो परम पवित्र शरह, ऊ कैसे अशुद्ध दोइ जैदे । महराज तोहार बुद्धी मग्यी गै है फा ? ठाकुर जी जब राम रहेन तबकी वात याद फरो, शहद निषाद का छाती से लगाइन, शवरी के जुठ वैर प्राइन रहा । तब नाही भये रहेन अशुद्ध, अ्रव अशुद्ध दोइ जैहे । महरोज, ईशुर आगगिड से गये बीते श्रद्दे । अआर्गिड तो पवित्र मानी ज्ञात है ।ओहमा चाहे जौन पर्डि जाय सब पवित्र, तो का ईशुर हमरे छुये से अशुद्ध द्वोइ दे ? कैसी चात करत ही महराज २ पुजारी--अबे भागता है यद्दा से कि चदस करता है २ छुझूको मैं भीतर नहीं जाने दूगा 1 अछूत-जो मैं पूजा न करिहदी, तो मोर गदेलवा फिर बिमार पड़ि जाई | मोका पुजा कर लेय देव । [गाता है ] मोरे हैं. भगवान, तोरे. हैं भगवान, ( १५ )




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