वीर - सतसई | Veer - Satasai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला शतक ] श्३
| कादर तो जीवित मरत दिन में बार हजार |
| प्रान-पखेरू बीर के उडत एकही” बार ॥७७॥
श्वान-सीच मरिहे कहूँ, घिक, रण-कादर नीच ।!।
पुएय-प्रतापनु पाइयतु शुद्ध युद्ध-थल्न-मीच ॥ »८॥
पवित्र ती्ये
अरे, फिरत कत, बावरे ! भटकत तीरथ भूरि |
अजों न धारत सीस पै सहज सूर-पग-धूरि ॥ ७६॥
बसत सदा ता भूमि पै तीरथ लाख-करोर ।
लरत-मरत जहाँ बाँकुरे विरुम्कि बीर वरजोर ]| ८०॥
जगी जोति जहाँ जुझ की, खगी खड़ खुलि भ्कूमि ।
रँगां रुधिर सों थूरि, सो धन्य धन्य रण-भूमि ॥ ८१॥
' तहाँ पुष्कर, तहँ सुरसरी, तहोँ तीरथ, तप, याग |
उठयौ सुबीर-कबंध जहाँ, तहेँईं पुण्य प्रयाग ॥८२॥
सगर-सौहेँ सर जहाँ, भये मिरत चकचूरि |
बडभागन तें मिलति वा रण-आगन की वबूरि ॥ ८३२॥
के कृपाण की धार, वे अनल-कुंड को ठाट।
एही वीर-बघून के, 8 अन्हान के घाट ||८४॥
अ्रनल-कुंड, असि-धार, के रकत-रंग्यो रण-खेत ।
लय तीरथ तारणु-तरण, छिति, छत्रिय-लिय-हेत ॥ ८५॥
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