मेघदूत | Meghadut

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेघदूत पूर्चाध 1 २१ $ पहुँचि दशारन जब तू ज्ञाई | कछु दिन हंस बसें चहँ भाई ॥ कलित केतकी जहें मन मा । उपचन सीम पडुरेंग सोहँ॥ नीड समय पंछी बह आदें। रण्यन माहिं कलेछ मचावें 1 स्पाप्त धरन सुदर दुतिमता। जमुनोफल पकि भे घन भता ॥ !६ विदिशा नाम तद्दों रजघानोी | देश देश विस्यात बसानो ॥ ता ढिंग पहुँच जबदि तू जेदै । रसबिछास के अतिफल पैद्दे ॥ घेत्रववी तट गरज्ञत धीरा। छीज्े मधुर तरगित नोरा॥ मनहु कुटिल भ्रशुटीयुत मुय ते । अधराम्तत छीना श्रति सुख ते ॥ सवेया १७ है विदिशा ढिग नोचगिरी करिये विसराम तहाँ घन जाए के । तादि मिलें लसिद्दै पुलकात से आछे कद्ब के फूलन छाइ फे ॥ देस्यन के अेंगराग की गधि शुफान तें ध्यारि के सग उड़ाह के । देद्दे बताइ ज्िद्दार फरें यद्ाँ नागर छैछ नए नए आइ के।॥। कच्चा १४ तेरे पहुँचने से दशारन देश में कुछ दिन दस ढहरेंगे। इस देश में केतकी बहुत ऐती हें। उनके फूजों से वायों की सीमा पीली दीसेंगी । गाँव के निकद के रूखों में घोंसला बनाने के दिनों,पपेर कलोन करेंगे, जामुन के पक्के फल्नों से बन के किनारे स्थाम दिखाई देंगे ॥ १६ दुशारन की राजधानी विदिशा (अ्रथात्‌ भेज्नसा) है जहाँ वेदवती नदी बहती है। तू मद सद गाज कर उस तरगित नदी का जलन ऐसे ल्लेगा माने भोंह चढ़ाती हुई नायिका का अधरास्त नायक ने लिया और यही रसनाविज्ञाप्त का उत्तम फक्ष है ( कामिनामधराखाद सुरतादतिरिच्यते ) ॥ कवि दोग मेघ को नायक और नदी को नायिका वाँधा करते हें ॥ विदिशा के निकट नीचगिरि नाम पवत हे । उस पर तू विधाम लोजो | चह फूल हुए कदवों से ऐसे दीसेया साने। तेरे मित्नाप से पुलकित है । उसझी गुफाओं से वेस्यापों के शंगराय की सुगधि निकलती है 1 इससे जाना जाथया कि नगर के छैल्वा यहाँ झा झाकर विद्वार करते है ॥ ऐ




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