कहानी संग्रह भाग 3 | Kahani Sangrah Part-3
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.11 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रायद्चित्त ) ध्
पण्डित परमसुख चोबे छोटे-खे-मोटे-से आदमी थे । लस्वाओी
चार फॉट दस जिश्च और तोदका घेरा अद्ठावन ' जिश्च।
चेहरा गोल मठोल सूछ बड़ी-बड़ी, रंग योर, चोठी कमर तक
पईचती इुआ ।
कहा जाता हे के शथुराम जब पसरा खुरयकवाल
पाण्डताका छढूढ़ा जाता था ता पाण्डत परमखसुखजाका असर
लस्टस प्रथम स्थान दया जाता था ।
पण्डित परमखुख पहुँचे, और कोरस पूरा हुआ । पंचायत
बेठी-सासजी, सिखरानी, किसनूकी माँ, छन्नूकी दादी
और पण्डित परमसुख । बाकी स्त्रियाँ बहुसे सदाजुभूति प्रकट
कर रही थीं । तल .
किसनूकी मेंनि कहा--“पाण्डित, बिल्लीकी हत्या करनसे
कोन नरक मिलता हे ? ”
पणिडित परमसुखने पत्रा देखते हुओे कहा--“ बिल्ठछीकी
हृत्या अकेलेसे तो नरकका नाम नहीं, बतलाया जा सकता, वह
महरत भी जब मालूम हो, जब बिल््लीकी हत्या इआी तब
नरकका पता लग सकता है। ”
प
७
“यही कोभी सात बजे खुबह | ”--मिसरानीजीने कहा ।
» पण्डित परमसुखने पत्रेके पत्ने झुलटे, अक्परोपर
गलियों चलाया, मत्थेपर हाथ लगाया आर कुछ सोचा
' चेहरपर चुधलापन आया । मांथेपर बल पड़े, नाक कुछ
सिकुड़ी और स्वर गंभीर हो गया-<''हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण !
बड़ा बुरा इुआ, प्रातःकाल ब्राह्मसुद्ुतम। विल्लाको हृत्या !
घोर कुर्स्भापाक नरकका एवेधान है।. रासूका मा; यह तो
बड़ा बुरा इुआ। ” स्क
दर
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