पातञ्जल योगदर्शन तथा हारिभद्री योगविंशिका | Patanjal Yogadarshan Tatha Haribhadri Yogavashika

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Patanjal Yogadarshan Tatha Haribhadri Yogavashika by यशोविजयोपध्याया - Yashovijayopadhyayaसुखलाल - Sukhalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय, ् +७--.० (कक पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत पुस्तक उपस्थित करते हुए इसका संक्षेपमं परिचय कराना जरूरी है। शुरूमें प्रस्तावना रूपसे योगदर्शन पर शक विस्तृत निवन्ध दे दिया गया है जिसमे योग तथा योग-सम्बन्धी साहित्य आदिसे सम्बन्ध रखनेवाली अनेक बातों पर सप्रमाण विचार किया गया है| तत्पश्चात्‌ इस पुस्तकर्म मुख्यतया योगपघ्ृत्रवृत्ति और सटीक योगविंशिका इन दो अन्थोंका संग्रह है, तथा साथम उनका हिंदी सार भी पदिया हुआ है । अतपव उक्त दोनों ग्रन्थोका, उनके कर्ता आदिका तथा हिंदी सारका कुछ परिचय कराना आवश्यक है, जिससे वाचकॉको यद्द मालुम हो जाय कि ये ग्न्थ कितने महत्त्वपूर्ण हैं, और इनके कर्ताका स्थान कितना उच्च है। साथ डी यद्द भी विदित हो जाय कि मूल भन्थेकि साथ उनका हिंदी खलार देनेसे हमारा क्या अभिप्राय है। आशा है इस परिचय- को ध्यानपूर्वक पदनेस वाचकॉकी रुचि उक्त दो भग्रन्थोंकी ओर विशेष रूपमे उत्तेज्ञित होगी, ग्रन्थकर्ताअंकि प्रति बा मान पैदा होगा | और छिंदी सार देख कर उससे मूल ग्रन्थके भावको समझ लेनेकी उचित आकांक्षा पैदा होगी । (१) यागसत्रद्वात्ति--यह बृत्ति योगसुत्रीॉकी एक छोटी सी ठिप्पणिरूप व्याख्या है। योगसपरेर्मि सांगोपांय योगप्रक्िया है, जो मांख्य-सिद्धान्तके आधार पर लीखी गई है। उन सूचरों के ऊपर सबसे प्राचीन और सबसे अधिक मद्धच्चकी दीका मदहर्पि ब्यासका साथ्य है।यद श्रसन्न गंभीर और विस्तृत भाष्य सांरय सिद्धान्तके अनुसार ही रचा गया है, पर दृत्ति जैन प्रक्रियाके अनुसार रची गई है। अतणय जिस जिस




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