हर्ष चरितम् | Harsh Charitam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उच्छासः ] जयश्री- कथाभटद्वीयासदितम्‌ । ३ त्यदर्षणोक्तेः । चन्द्र एव चामरमिति रूपकम्‌ । 'रूपक रूपितारोपो विपये निरफ- हवे? इति साहित्यदर्पणे । अन्न रूपकानुप्राणिता कविह्ृदि श्थिता शद़ूरविपयिणी रतिघ्वेनिमर्यादया प्रतीयते ॥ १ ॥ कथाभइनन्द किशो रशर्मसाहित्याचाय कूत- कथा भद्दीया हिन्दीदीका । गद्यकाव्य के अप्रतिम विद्वान , कादम्बरी कथा के जन्मदाता, ६०६-६४४८ ई० में वर्तमान कन्नौज के महाराज श्रीदृषवधन सम्राट के राज पण्डित, परम- साननीय श्रीबाणभट्ट कवि अपने संरक्षक श्रीद्ृषयर्धन सम्राट की “हप्चरित आख्यायिका”? ( गद्यकांग्यभेद ) के प्रारम्भ में शिश्लाचारप्राप्त, मप्लकामना से विद्याप्रदानरसिक भगवान्‌ श्रीश् ६र को नमस्कार करता दै-*नम इति । उन्नत मस्तक पर विराजमान चन्द्रमाकृपी चामर से अलछंकृत तथा निजोकी रूपी नगर के निर्माण में मूछस्तम्भ भगवान्‌ शंकर को में नमस्कार करता हैँ । जो भगवान्‌ शंकर त्रिक्रोदी के निर्माण में मूलस्तम्भ दे वे दी इस ग्रन्थ के निमोण के आधार द्वो सकते दूँ अत: उनको नमस्कार करना कवि के ओवचित्य को प्रदर्शित करता दे । कवि ने भ्रन्थ के “इरकण्ठ०” इस द्वितीय इलोक में शंकरपत्नी पावेती को नमस्कार किया है इस कारण अस्तुत इलोक में शंकर की स्तुति करना ही कवि को अमिमत दे तथापि इस इलोक में ब्रह्म और विष्णु को स्तुति भी भ्रस्फुटित दो रही दे। ब्रह्मा के पक्ष में मेदिनोकोश के कथन से चन्द्रपद सुबर्ण का भी बोधऋ दे । उन्‍नत मस्तक में स्थित सुव्भय चामर ( केशों ) से शोमित अथोत्‌ हिर- ण्यकेश भद्या को नमस्कार है। “शम्भू ब्रह्मत्रेलोचनो? इस अमभिधानकोश से शम्भुपद त्रद्मा का भी वाचक है। विष्णुपक्ष में “स्वयंभू शाम्भुरादित्य:? इस्र विष्णुश्तदसननाम के अनुसार यहाँ शम्भुपद से विष्णु का अथ समझना चाहिये । “यस्यारिनिरास्यं ग्ोमूघो” इस वचन से स्वगे विष्णु का मस्तक है । उच्चस्थित छुल्लोक में वर्तमान चन्द्रमा रूपी चामर से अलंकृत विष्णु को नमस्कार है । “बत्रै- लोक्यनगरा०?” इस पद का अथ तीनों पक्षों में समान ही है ॥ १॥ हरकण्टअहानन्दमी लिताक्षों नमाम्युभाम्‌ । कालकूटविषस्पश जातमृच्छोंगभामिव ॥ २॥




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