ट्ठाणं सूत्र | Shri Thanga Sutrau00a0

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भावार्थ-दरेक जीवाजीवने चलूण- सहा- यरुप धर्मास्तीकाय एकज छे, अर्थ-ए० एक अ० अधर्मास्तिकाय एगे अथम्मे। ७॥ भावार्य-सर्व जीवाजीवने स्थीर सहाय- रुप अधम[स्तीकाय एकज छे, अर्थ-ए० एक वं० वंध एगे वन्धे ॥ ८ ॥ भावार्थ -कपायादीक अकृृतियोथी कर्म बंधावा रुप बंध एकज छे, अर्थ-ए० एक मो० मोध्त एगे मोक्खे ॥ ९॥ भावाथ-सर्व कर्म क्षय रुप मोक्ष एकजछे, अर्थ-ए० एक पु० पुन्य एगे पुण्णे ॥ १० ॥ भावाथ-बेंतालढीस ग्रकारे शुभ कर्म प्रकृ- ति भोगववारुप पुन्य एकज छे, अर्थ-ए० एक पा० पाप एग पाव ॥ ११ ॥ भावार्थ-व्याशी प्रकारे अशुभ कर्म प्रकृति भोगववारुप पाप एकज छे., अर्थ-ए० एक आ» कर्म जावे ते आश्रत एगे आमवे॥ १8 ॥ भावार्य-वेतालीस ग्कारे अशुभ कर्म आ- वबारुप आश्रव एकज छे. अर्थ-ए० एक सं० कर्म आवतां रोके ते संवर एगे संबेर॥ १३॥ भावा्-अथशुभ कर्म आवतता रोकवरारुप सतावन प्रकारे संचर एकन अर्थ-ए० एक वे० कर्मनु भोगवर्यू ते बदना पगा वेयणा ॥ १४ ॥ ह्वार्ण संत्र १ भावाथ-जीवने आठ कर्म भोगववारुप बेदना एकज छे अर्थ-ए० एक नि० कर्म टालवारुप निर्भेरा एगा निज्जग ॥ १५ ॥ भावार्थ-वार प्रकारनी तपश्चर्यावदे आ- त्थाना प्रदेशथी थोहां थोड़ां कर्मक्षय थवारुप निर्जरा एकज छे, ! अर्थ-ए० एक जी० जीव पा० प्रगट वादर स० शरीरे अत्येके जुजूए शरीरे जीव एगे जीवे पाडिकएणंसरीरएणं ॥ भावार्थ-मत्येक ( छुदां छुदां ) शरीरनो धरनार ग्राणघारी जीव एकज छे ( अहिआं प्रत्येक शरीर कहेवान्नु कारण एटलुंन के सा- धारण शरीरी जीव तमाम कर्मक्षय करी शक- ता नथी ने अत्येक शरीर जीव स्व कर्मक्षय ' करी शके छे तेंथी प्रत्यक्ष शरीरी जीव कहेल छे, ) अर्थ-ए० एक जी० जीवने अ० वाहिस्ला पुदूगल अणछाथे बि० विकुब्बणा पुद्दल एगा जीवा्ण अपरियाइत्ता विउ बणा | १ ॥ न्‍ भावार्थ-देवता वाद्दीरनां पुटंगल ग्रद्या वि- ना भवधारणी गसेर वध ते पत्येक्ते एकज बंधाय पण घणां वंधाय नहीं, ते आश्री जी- बने एकज विकृणा अर्थ-ए० एक म० मन जाणीए जेणेंत एगे मणे ॥ भावार्-संज्ञी पंचेद्री जीवना व्यापाररुप्‌ ग्रन एकज छे ) अध-ए० एक व० वचन समुचय थकी एगा वह (1३ ॥| भावार्थ-अनेक प्रक्रारे बोलबा रुप वचन एकज छे, कल




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