ट्ठाणं सूत्र | Shri Thanga Sutrau00a0
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भावार्थ-दरेक जीवाजीवने चलूण- सहा-
यरुप धर्मास्तीकाय एकज छे,
अर्थ-ए० एक अ० अधर्मास्तिकाय
एगे अथम्मे। ७॥
भावार्य-सर्व जीवाजीवने स्थीर सहाय-
रुप अधम[स्तीकाय एकज छे,
अर्थ-ए० एक वं० वंध
एगे वन्धे ॥ ८ ॥
भावार्थ -कपायादीक अकृृतियोथी कर्म
बंधावा रुप बंध एकज छे,
अर्थ-ए० एक मो० मोध्त
एगे मोक्खे ॥ ९॥
भावाथ-सर्व कर्म क्षय रुप मोक्ष एकजछे,
अर्थ-ए० एक पु० पुन्य
एगे पुण्णे ॥ १० ॥
भावाथ-बेंतालढीस ग्रकारे शुभ कर्म प्रकृ-
ति भोगववारुप पुन्य एकज छे,
अर्थ-ए० एक पा० पाप
एग पाव ॥ ११ ॥
भावार्थ-व्याशी प्रकारे अशुभ कर्म प्रकृति
भोगववारुप पाप एकज छे.,
अर्थ-ए० एक आ» कर्म जावे ते आश्रत
एगे आमवे॥ १8 ॥
भावार्य-वेतालीस ग्कारे अशुभ कर्म आ-
वबारुप आश्रव एकज छे.
अर्थ-ए० एक सं० कर्म आवतां रोके ते
संवर
एगे संबेर॥ १३॥
भावा्-अथशुभ कर्म आवतता रोकवरारुप
सतावन प्रकारे संचर एकन
अर्थ-ए० एक वे० कर्मनु भोगवर्यू ते बदना
पगा वेयणा ॥ १४ ॥
ह्वार्ण संत्र १
भावाथ-जीवने आठ कर्म भोगववारुप
बेदना एकज छे
अर्थ-ए० एक नि० कर्म टालवारुप निर्भेरा
एगा निज्जग ॥ १५ ॥
भावार्थ-वार प्रकारनी तपश्चर्यावदे आ-
त्थाना प्रदेशथी थोहां थोड़ां कर्मक्षय थवारुप
निर्जरा एकज छे, !
अर्थ-ए० एक जी० जीव पा० प्रगट वादर
स० शरीरे अत्येके जुजूए शरीरे जीव
एगे जीवे पाडिकएणंसरीरएणं ॥
भावार्थ-मत्येक ( छुदां छुदां ) शरीरनो
धरनार ग्राणघारी जीव एकज छे ( अहिआं
प्रत्येक शरीर कहेवान्नु कारण एटलुंन के सा-
धारण शरीरी जीव तमाम कर्मक्षय करी शक-
ता नथी ने अत्येक शरीर जीव स्व कर्मक्षय '
करी शके छे तेंथी प्रत्यक्ष शरीरी जीव
कहेल छे, )
अर्थ-ए० एक जी० जीवने अ० वाहिस्ला
पुदूगल अणछाथे बि० विकुब्बणा पुद्दल
एगा जीवा्ण अपरियाइत्ता विउ
बणा | १ ॥ न्
भावार्थ-देवता वाद्दीरनां पुटंगल ग्रद्या वि-
ना भवधारणी गसेर वध ते पत्येक्ते एकज
बंधाय पण घणां वंधाय नहीं, ते आश्री जी-
बने एकज विकृणा
अर्थ-ए० एक म० मन जाणीए जेणेंत
एगे मणे ॥
भावार्-संज्ञी पंचेद्री जीवना व्यापाररुप्
ग्रन एकज छे )
अध-ए० एक व० वचन समुचय थकी
एगा वह (1३ ॥|
भावार्थ-अनेक प्रक्रारे बोलबा रुप वचन
एकज छे,
कल
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