ईश्वर दर्शन प्रारंभ | Ishwar Darshan Prarambh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२३)
. कब सन 1६६६३ लाश । तथाह पा स्वयमेव वासुदेवः
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्त येपि स्थुः * । ख्रियो
व्रश्यास्तथा शूद्वास्तपि यांति परां गतिमिति' ॥ १३ ॥
किंच---
“अधिकारनियमाभावाच्च” जैसे अन्य देवतायोंके आराघनके साध.
नभूत वृहस्पतिसव राजसूयादि यज्ञोंमें ब्राह्मण और क्षत्रियादिकोंका-
हि अधिकार है दूसरोंका नहि तेसे ईश्वरके आराधनमें जाति गुणा-
दिक्ोंका छुछ विशेष नियम नहि है, क्योंकि श्रुति स्ट्ृतियोंमें किसी
जीवकोमी ईश्वराराघन करनेका निषेध नहि किया है तथा गीतामें
श्रीकृष्णज्ञीकामी वचन है। मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येपि स्थुः पाप-
योनय: । स््ियो वैश्यास्तथा शूद्वास्तेपि यांति परां गतिम? । अर्थ-हे
पार्थ, खियां वैश्य और शूद्व तथा अन्यभी जो नीच योनीवाले जीव
है सो मेरी शरणमें आनेसे सबहि परम गतिको प्राप्त हो जाते हैं इति
परमेश्वरोस्तीति केचिदाहुनोस्तीति पुनरन्ये जस्पंत्यतो
विवादास्पदत्वादीश्वरस्स सद्भावनिश्रयाभावे कर्थ तख्याराधनं
कुमहे तत्राह ।
4
प्रमाणसिद्धत्वान्न विवादः ॥ १४ ॥
ईश्वरसक्लावे विवादों नास्तीति विज्ञेयं कुतः. ममाण-
[० हर ४ ने 8
सिद्धत्वात् श्रुतिस्मतीतिहासादिप्रमाणरीश्वरस्य शतशो
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