श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagavadgeeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४४६ प्रीमहगाड़ीता [ भ्रन्या० १ ]
10 बह्या वरुणेन्द्रर्द्रभस्तः इतुलन्ति दिव्य: स्तन
$ ये । 22० हद्े, सांगपदऋमोपनिपदेगयिन्ति य॑ सासगाः।
000 ध्यानावस्थिततद्तेतमनला पश्वस्ति द॑ योगिनो
आः प्यास न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्से नमः ॥
अजत्मा सं्ेषाभधिपतिस्मेयोंपि जगता-
मधिष्ठाय स्वीर्या प्रकृतिमिव देही स्फुरति यः ।
विन कालेन द्विविधमस्त धममनधम््
पुनः प्राहेश त॑ विम्क्षशुभ्द॑ नोमि परमम् ॥
शहा | थाज़ भ्राकाशर्म सृय्ये , चन्द्र तथा तारागण एकही ह
समय क्यों उदय होरहे हैँ १ आज वायु क्यों अद्भुतरूपसे
लहराती हुई बहरही है ! जिघर देखता हूँ उधरहीते एक घोर अम्धड
भवकड तथा मंभावात (तूफान) से समा वंधाहुआ देख्पडता है ऐसा
बोध होता है, कि उनचासों पवन एक संग मिल्लकर न जाने किस गोरे
चले जारे हैं ! भाज समुद्रमे बडवानल क्यों महक उठा है ! भ्रिन-
हेत्रियोके अग्निदेव भापले आप कुणडोंमे क्यों प्रखलित हागये है !
द्शों दिशाओंमें ब्योति ही ज्योति क्यों दीख पड़ती है ? नंद नदियोंके
जल हें लेलेकः भर उदलर कर आकाशकी ओर क्यों जानेकी
इच्छा करहे हैं ! जाज पृथ्वी क्यों डग्मगा रही है ! पुष्पवाटिका-
अके पृष्पोंकी कलियां चटक चब्क कर क्यों आप्सेभाप न
सय खिलरही हैं ? आज विश्वमात्र ( पृथ्वीमर ) के वृक्त आर जे
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