त्रिकुटी विलास | Trikuti Vilas

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Trikuti Vilas  by स्वामी हंसस्वरुप - Swami Hansaswaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १६) जो कनिष्टो' अँगुर्लाकें समान मोटा हो, शुद्धकर कमसे कम सातवार जिह मलकोः निंकालना । रेसा नदीं करनेसे दांत और जिह। शुद्ध नहीं होती | मुख एक प्रकार कादुगेन्ध आता है । फिर केशोंकों अच्छे अकार भाड़ना, कि जूंये (लीक) न फैलजाबें,वा और.किसी प्रकारसे घुणा न उत्पन्न हो। फिर स्नानके समय कटिसे जेघातक ग्रत्तिका लगां स्नॉन करना स्त्री-प्रसगके पश्चात्‌ सर्वाक्निमें स्रत्तिका लंगा. स्नानकरंना । और ध्यान रखना, कि. जिस वस्त्र को पहिंनेकर स्त्रीप्रसक्ल किया हो, उसको पहनेहुये स्नान न करना, बरु उसको उतारकर दूसरे बस्त्रकों घारणकर स्नॉन करेना) क्योंकि मंलुकी आज्ञा हैं, कि * আমান शुध्यन्ति ”,अथोत्त जलद्दीसे “शारीरिक शुद्धि द्वोती दें .॥ -. २. मानसिकशौच~-कपट, चल, प्रपश्न, पाखणडादि को परित्यागकर सबसे सच्चादों रहना; और शुद्ध चित्तसे सबके सज्ञ मित्रतारखनी;और अपना कोई अर्थ अनुचित रीतिसे लाभ न करना |. ^ सर्वैषामेव शोचानामयंशौचं परं स्मृतम्‌ । योऽथ शुचिं सः शुचि नं मृद्वारि- शुचिशुत्िः ॥ मनु० अ० ५ श्लोक १०४




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