श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagavadgeeta

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shrimadbhagavadgeeta  by स्वामी हंसस्वरुप - Swami Hansaswaroop

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी हंसस्वरुप - Swami Hansaswaroop

Add Infomation AboutSwami Hansaswaroop

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१४४६ प्रीमहगाड़ीता [ भ्रन्या० १ ] 10 बह्या वरुणेन्द्रर्द्रभस्तः इतुलन्ति दिव्य: स्तन $ ये । 22० हद्े, सांगपदऋमोपनिपदेगयिन्ति य॑ सासगाः। 000 ध्यानावस्थिततद्तेतमनला पश्वस्ति द॑ योगिनो आः प्यास न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्से नमः ॥ अजत्मा सं्ेषाभधिपतिस्मेयोंपि जगता- मधिष्ठाय स्वीर्या प्रकृतिमिव देही स्फुरति यः । विन कालेन द्विविधमस्त धममनधम्‌्‌ पुनः प्राहेश त॑ विम्क्षशुभ्‌द॑ नोमि परमम्‌ ॥ शहा | थाज़ भ्राकाशर्म सृय्ये , चन्द्र तथा तारागण एकही ह समय क्यों उदय होरहे हैँ १ आज वायु क्यों अद्भुतरूपसे लहराती हुई बहरही है ! जिघर देखता हूँ उधरहीते एक घोर अम्धड भवकड तथा मंभावात (तूफान) से समा वंधाहुआ देख्पडता है ऐसा बोध होता है, कि उनचासों पवन एक संग मिल्लकर न जाने किस गोरे चले जारे हैं ! भाज समुद्रमे बडवानल क्यों महक उठा है ! भ्रिन- हेत्रियोके अग्निदेव भापले आप कुणडोंमे क्यों प्रखलित हागये है ! द्शों दिशाओंमें ब्योति ही ज्योति क्यों दीख पड़ती है ? नंद नदियोंके जल हें लेलेकः भर उदलर कर आकाशकी ओर क्यों जानेकी इच्छा करहे हैं ! जाज पृथ्वी क्यों डग्मगा रही है ! पुष्पवाटिका- अके पृष्पोंकी कलियां चटक चब्क कर क्यों आप्सेभाप न सय खिलरही हैं ? आज विश्वमात्र ( पृथ्वीमर ) के वृक्त आर जे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now