लघुसिद्धान्तकौमुदी | Laghusiddhantakaumudi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
1093
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संज्ञा)्रकरणम् । श्५
( ताल्वादिपु सभागेपु स्थानेष्बधोभागे निष्पन्नोड्यू अनुदात्तसंज्ञः
स्यात्। )
( स्वरितरसंज्ञायूत्रम )
/ &समाहारः स्वस्तिः' | १।२। ३१ ॥
(उदात्तानुदात्तत्वे वणेघर्मों समाहियेते यत्र सोच स्व॒रितसंज्ञः स्यात् |)
( अचामनुनासिकनिरनुनासिकमेदेन पुनदवविध्यप्रतिपादनम् )
स नवविधोडपि प्त्येकमनुनासिकाननुनासिकत्वाम्यां द्विधा ।
( अनुनासिकसंज्ञासत्रम् )
_९./सुल्लनासिकावचनो >मुखनासिकावचनो5नुनासिक:' | १ । १।८॥
मुबसद्ितनासिकयोच्रायमाणो वर्णाउनुनासिकसंकज्ञ: स्थात्
नमन
७ नीचेरिति--( नीचे: ) कण्ठ ताड॒ आदि रुखण्ड स्थानों के नीचे के
भाग से जिस अच् का उच्चारण होता है वह ( अनुद्यत्तः ) अनुदात्त होता है |
८ समाहार इति--( समाहारः ) उदात्तत्व और अनुदात्तत्व दोनों धर्मों
का मेल जिस वर्ण में हो वह ( स्व॒रितः ) स्त्ररित होता है अर्थात् ताड आदि
स्थानों के भध्यमाग से जिस अच् का उच्चारण होता है उसे स्वशित!
कहते हैं |
उदात्त, अनुदात्त और स्व॒रित के उठाहरण वेद में आते हैं, वहीं उनका
उपयोग भी है । यहाँ उपयोग न होने पर भी इन्हें याद कर लेना चाहिये।
आगे 'स्वरप्रकरण” में उनका उपयोग सिद्ध होगा। छघुकौमुदी में तो
“स्व॒रप्रकरण' है ही नहीं |
स इति--( सः ) वह अच ( नवविधो5पि ) नवों प्रकार का ( मत्येकम् )
प्रत्येक ( अनुनासिकाननुनासिकलाम्याम् ) अनुनासिक और अननुनासिक भेद
से ( द्विधा ) दो सरकार का होता हे ! है है
९, मुखनासिकेति - ( मुखसहितनासिकया ) मुख के नासिका से
( उच्चारयमाणों वर्ण: ) बोला जा रहा वर्ण ( अनुनासिकर्संकज्ञ: स्वात् ) अछु-
नासिक संज्ञावाला ही । , विद कक
अर्थात् जिसवर्ण का उद्यारण नासिका से होता दे उसे अनुनासिक! कहते हैं ।
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