ऋग्वेद - तृतीया ऽष्टकः | Regved - Sanhita Bhasha - Bhashya (bhag - Iii)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
914
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ह क ओश्म् 12
ऋग्वेद विषय सूची
_. तृतीयो5ष्टकः । तृतीये मण्डले
( सप्तमंसूक्काद आरभ्य 9
प्रथमो5ब्यायः ( प० १-११७ )
सूृ० [ ७ ])--( १ 2) माता पिता गुरुज़नों का कत्तव्य | पक्षान्तर सें
अशप्नि, प्रभु शितिप्रष्ठ हैं । (२) किरणों वाले सूथ के चारों ओर प्रथ्वी की
परिक्रमा, श्रकाश ग्रहगवत् शिप्यों की उपासना ओर ज्ञान ग्रहण । राजा
जा का व्यवहार । (३) सू्यवत् राजा के. कत्तेव्य । ग्रहपति के कत्तंव्य 1 (४)
: चालक शक्ति और यन्त्र, किरणों और सूर्य और स्त्री पुरुष के दृष्टान्त से राजा
थरजा का व्यवहार । (५) राजा प्रजावत् गुरु शिप्य । (६) सूय, मेघ से
जलान्नवत् गुरु जनों से ज्ञानोपाजन। ग्ृहस्थ खी. पुरुषों के कत्तब्य । (७)
यज्ञकत्ताओं, सूर्य की किरणों के समान देह में प्राणों के कम । (4) मेघों
के तुल्य आदर- योग्य भुरुनन 1 ( ९ ) अश्व की रासों वा सूर्य की
किरणों के समान शिप्यों प्रजाओं का नियन्त्रण । (१०) उपाओं के समाने
| अजाओं के कत्तंच्य । ( ए५ १-११ ) ४1. 9
' सू० [ है ब्रक्षवत् विद्वान् का कर्तव्य | पक्षान्तर में राजा का
कत्तव्य । (४3) आचाय के गभ से उत्पन्न विद्वान को उपदेश । (६) कृठारवत
विद्वान का कत्तब्य । क्रपक, वा क्षत्रियवत्् विद्वान । (< ) लछोकों में
सूंयंवत् प्रधान विद्वान् की स्थिति । ( ९ ) हंसों के ठुल्य वीर और विद्वान
जन | (१०) यज्ञ में यूपों के समान विद्वान्ू वीरजन। ( ११ ) वटवद
नी
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