श्री मद्रा मायणपारायणोप क्रमः | Shri Madwalmiki Ramayan Balkand I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ॥ ) इस श्लोक में महृषि वाल्मीकि जो के लिए “भगवान” ओर “ आत्मवान्‌” जो दो विशेषण प्रयुक्त झिये गये हैं, वे आादि काव्यस्वयिता जैसे मार्मिक एवं सर्वक्ष अन्य-ए्वयिता, शिगटदावश स्वय अपने लिए कभी व्यवहार सें नहीं ला सफते। फिर इस श्वोक के अर्थ पर ध्यात्त देने से सी स्पष्ट बिदित होता ६ फ्ि, इस श्लोक का कहने वाला गन्थ-रचयिता नहीं, प्रयुव कोई अन्य ही पुरुष है। अत भअन्थ की भूमिका पढ़ने के लिये उत्छुक जना को, चालकाण्ड के दूसरे तीसरे ओर चौथे सगे का पढ़ सनन्‍्तोष कर लैचा चाहिए। क्योकि ग्रन्थ की भूमिका मे जो आवश्यक बाद होनी चाहिए, वे सब इसमें पाई जादी हैं। यथा, ग्रन्थ की उसत्क्टता का दिश्दर्शन, ग्रन्व में निहपित विपयों का सन्निप्त वर्णन, ग्रन्थनिर्माण का प्रकाशन-ऊाल और अ्न्थ पर लोग का सम्भव । ये सभी बातें उक्त तीन सर्गों में पाई जाती हैं। अततदुवा इससे नयी भूमिका जोड़ने की आनश्यकता नदी ६ । तथ दा, इस ग्रन्थ के पढ़ने पर ऐतिहासिक दृष्टि से, सामा|ं जिक दृष्टि से, धार्मिक दृष्टि ,से, राजनीतिक दुष्ट से पढ़ने वाले किन सिद्धान्तों पर उपनीत हो सकते हैं, यह बाव दिख- लाने की आवश्यकता है। प्राचीन टीकाकारों ने इस प्रयोजनीय बिपय की डपेक्षा नहीं की। उन महानुभावों ने भी यथास्थान अपने स्पतंत्र विचार लिपिबदू किये हद | च्न्द्दी के पथ का अन- सरण फर, इस अथ के अनुवादक ने सी यथास्थान अपने स्वतत्र विचारों को उप््त करने मे अपने कत्तेव्य की उपेक्षा नहीं की। ऊफिन्‍्तु स्वान-स्थान पर जो विचार प्रकट किये गये हैं, थे सन्नरूप रे होने के कारण उनको विशद रूप से व्यक्त करने की आवश्यक्रता का अनुभव कर, अनुवाबक का विचार, अ्न्थ 5




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