गरुड़ - पुराण भाग - 1 | Garud Puran Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
481
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(४)
मरणोत्तर-जी वन की इस विचार धारा का सबसे भषिक विस्तार
“गरड-पुराएण” में किया गया है। यद्यपि इसमें और भी श्रनेक जीवनोपयोगी
विपयों का वर्णन पाया ज ता है, पर यम्लोक तथा नरकों का वर्णखंत भौर
मृत्यु के उपरान्त किये जाने वाले कर्मकाएंडो का विधि-विधान हो इसकी सबसे
बडी विशेषता मानी गई है । इस कारण झनेक दिन्दू धरो में किसी व्यक्ति का
देहान्त होने के प्रवसर पर इस पुराण का पारायण किया जाता है भर इसके
अनुसार न्यूनाधिक मात्रा मे दान-दक्षिणा भी किसी पुगेहित या “महाब्राह्मण!
भादि को दो जाती है । इसमे यम॒पुर के मार्ग तथा वरकों के कष्टो का वशन
ऐसे भयदू:र भोर वीभत्म रूप मे किया गया है कि सुसते वाले का हृदय कविने
लगता है। यह तो नही कहा जा सकता कि सब लोगो पर इसका प्रभाव
स्थायी होता है, पर भारतीय-प्रमाज से नरक! का जिक्र होना एक सामान्य
बात है प्रौर कियी के दुष्कर्म करते पर उबके “नरक-वास” की सम्मावता भी
प्रकट कर दी जाती है 1 यड़ बात दूवरी है कि १ह३े और सुतते वालो को इस
पर कितना विश्वास हरेता है ।
“पगरुड़-पुराण” की शिक्षायें---
“गरुड-पुराड” के 'ब्रेत खएड' में ३५ भष्याय हैं । इनमें दाव का फ़ल
बतला कर उपके द्वारा मृतास्मा की सदुगति का वर्णन क्रिया गया है। यमलोक
के भयकर फष्टो का वर्णन क रके यड बवलाया गया है कि सबधियों के दान अकदि
के द्वारा परलोक मे मृतात्मा के कष्टो मे किस प्रकार कमी हो सकती है । इसके
लिये 'वृषोत्मण' (बिजार या साँड छोडना) का बडा महत्त्व दर्शाया है / मम-
राज के न्यायालय प्रौर उनके कार्याध्यक्ष चित्रगुप्त के स्थानों का वर्णन भी कई
जगह विस्तार पूर्वक किया गया है। इसका उद्देश्य यही हो सकता है कि जह-
साघारण उन पाप कर्मों से ययथामम्बंद बच कर रह, जिनसे यमलोक से कष्ट
पाते की सम्भावना हो | झागे चलकर भ्पमृत्यु सरने वाले व्यक्तियों के प्रेत होने
का चणणन भौर प्रेतयोनि में जीव की घोर दुर्देशा वणेन किया गया है | बयोवि
इस बात वा कोई निभय नही होता है कि कोन व्यक्ति प्रेययोनि का प्रक्त हुमा
है घोर वह कब तक उसमे पडा रहेगा, इसलिय प्रत्येक जीवित व्यक्ति वा यह
ह
जद
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