श्वेताश्व तरोपनिषद | Swetaswatropnishad

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्वेताश्व तरोपनिषद  - Swetaswatropnishad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विनीत - Vinit

Add Infomation AboutVinit

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम संस्करणको प्रस्तावना इवेताध्वतरोपनिषद्‌ कृष्णयज्ुवेद्के अन्त्त है । इसके वक्ता ब्वेताइवतर ऋषि हैं।डन्‍्होंने चतुथी अमियोंक्नो इस विद्याका - डपदेश किया था । यह दात इस डपनिपद्के पष्ठ अध्यायके इक्कीसच॑ मस्जले विज्ित होती है। इस डपनिषद्क्की विचेष्ननशेली बढ़ी ६ी झुसम्बद्ध ओर भावप़ण है। इसमें साधर) साध्य साधक और प्रतिपाद्य विपयके महत्त्यका बहुत स्पष्ट ओर मार्मिक भाषामें निरुपण किया है | इसमें पलंगाजुलार लांख्य+ योग, खघुण, विर्एण,. हेंतव। अब्वेैंत आदि कई अधछ्यरते सिद्धान्तोंक्ा उल्लेख इुआ है |! अतः इसके वाकयोके आवारस्दे सांच्यवादी भार देतमतावलम्बियांस भी एड़े समारोहसे अयने सिद्धास्ताका सम्र्थद क्विया | कुछ चह्मयचादा आपसरूमे पिल्कर इस विषयमे विच्यार ऋरते हैं कि जगत॒का कारण कथा है $ हम कहॉँले उत्पन्न हुए ! किलके हारा हम जीवन धारण करते हैं ? कौन हमारा आधार है ? और किलकी प्रेरणाले हम ठुःख-छुख भ्गेग करते हैं ? संखारके सस्पुण दाशलिक इल प्र सेमे दी हे! को हल करतेमे द्वी व्यस्त गहे € ! होने अपली-अपली अज्ु भृतिके आधारपर जो-जो निर्णय किये हैं, वे दी विभिन्‍त दाशलतिेक सिद्धान्तोक्त रूपये प्रसिद्ध हुए है। बस्ठुतः इस प्रकारक्ती जिक्षाछा दी सार दशनशात्यका बीज है ओर यह जितनी तीन एवं निन्‍्पेक्ष होती है उतनी हो अधिक वास्तविकताके समीप ले जानेवाली द्ोती है । अस्तु । . ऋषियोने ज्गतके कारणकी मीमांशा करते हुए काल- खभावादि लोकप्रलिद्ध कारणापर विचार किया, किंतु डनमेखे कोई भी उनकी जिहाला शान्त करनेमे सफलछ न हुआ; उर्हें




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now