चिरंजीवी | Chiranjivi

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Chiranjivi by महोपाध्याय माणकचन्द रामपुरिया - Mahopadhyay Manakchand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हनु टूट, हनुमान नाम फिर- इसका यहाँ पड़ा था, लेकिन बालक सबके सम्मुख- निर्भय वहाँ खड़ा था, इतना तो है सत्य कि इनर्मे- अतुलित वल-विक्रम था, अन्य सभी से भिन्‍न घर पर- इनका जीवन क्रम था, इनकी गति थी पवन देव-सी- बुद्धि शारदा जैसी, इस भूतल पर कहीं दूसरी- शक्ति न दिखती वैसी, + + + बचपन से ही ऋषि-मुनियों के- सँग करते थे क्रीड़ा, खेल-खेल में उन सबको भी- दे देते थे पीड़ा, कभी किसी की कम्बल लेकर- यहाँ-वहाँ रख जाते, कभी किसी की गठरी लेकर- उसको ही ललचाते,




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