विश्वात्मा श्री आदिनाथ | Vishvatma Shri Aadinath

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Vishvatma Shri Aadinath by महोपाध्याय माणकचन्द रामपुरिया - Mahopadhyay Manakchand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देव-लोक से कोई भू को ज्ञान नहीं दे सकता। इस धरती का कभी वहाँ से ताप नहीं ले सकता।। ड्सीलिए इस पुण्य धर पर देव स्वय ही आकर! अपने सब आदर्श कर्म का जाते राह बताकर! सार्थवाह का जीव वहाँ से भूतल पर जब आया। अपने शुभ कर्मों से क्षण-क्षण विकसित मन कर पाया।॥ तिमिर-ग्रस्त इस भूतल पर फिर नयी किरण ले आये। मूठ-ग्रस्त जड़ता के उर में ज्ञान दीप मुस्काये।। विश्वात्मा श्री आदिनाय 17




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