दक्ष - सुता | Daksha - Suta

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Daksha - Suta by महोपाध्याय माणकचन्द रामपुरिया - Mahopadhyay Manakchand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डाल-डाल पर कलियां चटर्खी- नव सौरभ लहयया, पुष्पावलियों पर अनजाने- भरें का दल आया, कोयल कूक उठी, अवनी की- विहँंस उठी अमराई, लता विटप से लगी लिपटने- रस बेबस सरसाई, कुण्ज-कुण्ज में हवा हठीली- मादकता फैलाती, उघर रही डाली को बूतन- किशुक चीर पिन्हाती, सरसों के खिलते फूलों पर- तितली-दल मेंड़राते, कली-कली को मधुप मनोहर- ग्रुन-गुन गीत खुनाते, अमरलोक-सा दक्ष-नगर था- मोहक रस से गीला, यहाँ उषा थी शीतल लहरी- चंदा सदा पनीला, दक्ष-सुता 13




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